बांग्लादेश की सड़कों पर आजकल एक नई बेचैनी है। शेख हसीना की सरकार के गिरने के बाद से कट्टरपंथी ताकतें सिर उठा रही हैं। पहले हिंदू मंदिरों और ईसाई चर्चों पर हमले हुए, अब सूफी संतों की मजारों को निशाना बनाया जा रहा है। देशभर में 100 से ज्यादा जगहों पर ऐसी घटनाएं हो चुकी हैं। मजारें तोड़ी गईं, लूटी गईं और वहां आने वाले लोगों को पीटा गया। मोहम्मद यूनुस की अंतरिम सरकार इस पर चुप्पी साधे हुए है, जिससे लोग डर के साये में जी रहे हैं।
कट्टरवाद का नया निशाना सूफी मजारें
अगस्त 2024 में शेख हसीना के सत्ता से हटने के बाद बांग्लादेश में हिंसा की लहर दौड़ पड़ी। पहले अल्पसंख्यकों को टारगेट किया गया। हिंदू मंदिरों पर पथराव, ईसाई चर्चों पर हमले और अहमदिया मस्जिदों को नुकसान पहुंचाया गया। लेकिन अब मुसलमानों का ही एक हिस्सा, सूफी समुदाय, खतरे में है। कट्टरपंथी, जो वहाबी विचारधारा से प्रभावित हैं, सूफी मजारों को इस्लाम के खिलाफ मानते हैं। वे कहते हैं कि मजारों पर मत्था टेकना मूर्तिपूजा जैसा है। बांग्लादेश में हजारों सूफी दरगाहें हैं, जो सदियों पुरानी हैं। इन पर हमले न सिर्फ धार्मिक, बल्कि सांस्कृतिक हमला हैं।
ढाका के पास नरसिंहदी जिले में जनवरी 2025 में 100 कट्टरपंथियों ने तीन मजारों पर हमला किया। पत्थरबाजी हुई, तोड़फोड़ की गई। इसी तरह, नारायणगंज, सिराजगंज और ठाकुरगांव में भी मजारें निशाना बनीं। एक रिपोर्ट के मुताबिक, अगस्त 2024 से फरवरी 2025 तक 105 मजारें ध्वस्त हो चुकी हैं। कट्टरपंथी समूह जैसे हिजबुत तहरीर और जमात-ए-इस्लामी इन हमलों के पीछे हैं। वे सूफी परंपरा को ‘गुनाह’ बताते हैं। लेकिन स्थानीय लोग कहते हैं कि सूफी संतों ने बंगाली संस्कृति को समृद्ध किया है। उनकी दरगाहें हिंदू-मुस्लिम सद्भाव का प्रतीक रही हैं।
यूनुस सरकार की खामोशी ने बढ़ाई चिंता
मोहम्मद यूनुस की अंतरिम सरकार ने इन हमलों पर अब तक कोई ठोस कदम नहीं उठाया। सिर्फ 20 गिरफ्तारियां हुई हैं, जो कुल मामलों के मुकाबले बहुत कम हैं। ग्लोबल सूफी ऑर्गनाइजेशन, जो 5000 मजारों का प्रतिनिधित्व करता है, ने विरोध जताया है। वे कहते हैं कि यह हमला सूफी अनुयायियों पर है, जो देश की आधी आबादी हैं। जनवरी 2025 में उन्होंने एक प्रेस कॉन्फ्रेंस की, लेकिन सरकार ने जवाब नहीं दिया। कट्टरपंथी अब सूफी संगीत और उत्सवों को भी रोकने की कोशिश कर रहे हैं। ढाका के अजींपुर दरगाह में अब भजन बंद कर दिए गए हैं, क्योंकि धमकी मिल रही है।
बंगाली संस्कृति पर साया
बांग्लादेश में सूफी परंपरा का इतिहास सदियों पुराना है। सूफी संतों ने इस्लाम को बंगाली दिलों से जोड़ा। उनकी मजारें त्योहारों और दुआओं का केंद्र रही हैं। लेकिन कट्टरवाद ने इसे चुनौती दी है। अफगानिस्तान और पाकिस्तान की तरह, यहां भी सूफी विरासत खतरे में है। हमलों से न सिर्फ मजारें बर्बाद हुईं, बल्कि करोड़ों का नुकसान भी हुआ। स्थानीय खादिम, जो मजारों की देखभाल करते हैं, डर में जी रहे हैं। एक खादिम ने बताया कि रात में डर लगता है, लेकिन वे अपनी परंपरा नहीं छोड़ेंगे। ये हमले सेकुलरिज्म को कमजोर कर रहे हैं और सद्भाव को तोड़ रहे हैं। बांग्लादेश की सड़कें अब डर की कहानी सुना रही हैं।
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