क्या आपने कभी गौर किया है कि जहाजों और विमानों की खिड़कियां चौकोर नहीं बल्कि गोल होती हैं? घरों और इमारतों में तो खिड़कियां ज्यादातर चौकोर या आयताकार ही मिलती हैं, यहां तक कि कारों में भी यही डिजाइन देखने को मिलता है। लेकिन जहाजों और हवाई जहाजों में ऐसा नहीं होता। आखिर ऐसा क्यों? इसके पीछे की कहानी दशकों पुरानी है और दूसरी विश्व युद्ध के हादसों से जुड़ी हुई है।
हादसों से मिली सीख
दूसरे विश्व युद्ध के दौरान अमेरिका के कई लिबर्टी कार्गो जहाज दो हिस्सों में चटककर टूट गए थे। उस समय करीब 19 जहाजों के डूबने की घटनाएं दर्ज हुई थीं। इन हादसों में बड़ी संख्या में लोगों की जान भी गई थी। बाद में जांच में सामने आया कि इन जहाजों में लगी चौकोर खिड़कियों और कोनों ने जहाजों की मजबूती को कम कर दिया था।
क्यों खतरनाक होते हैं चौकोर कोने?
दरअसल, चौकोर खिड़कियों के 90 डिग्री के नुकीले कोने जहाज की स्टील बॉडी पर पड़ने वाले दबाव को एक ही बिंदु पर केंद्रित कर देते थे। जब महासागर की तेज लहरों और बर्फीले पानी का दबाव पड़ता था तो वहीं से दरारें बनना शुरू हो जाती थीं, जो धीरे-धीरे पूरे जहाज को तोड़ देती थीं। उस दौर में जहाज बनाने के लिए इस्तेमाल किए गए स्टील में सल्फर और फॉस्फोरस ज्यादा होता था, जिससे मरम्मत और वेल्डिंग भी कमजोर पड़ जाती थी। नतीजा यह हुआ कि चौकोर कोनों से बनी दरारें जहाजों के लिए विनाशकारी साबित हुईं। इसके बाद डिजाइनरों ने गोल खिड़कियां बनानी शुरू कीं ताकि दबाव बराबर बंट सके और टूट-फूट की आशंका कम हो।
विमानों में भी दोहराई गई वही गलती
यही गलती विमानों में भी हुई। 1953 से 1954 के बीच ब्रिटेन के तीन डि हैविललैंड कॉमेट जेट विमान क्रैश हो गए थे। जांच में पाया गया कि उनकी चौकोर खिड़कियों के कोनों से दरारें फैलने लगी थीं, जो हादसों का कारण बनीं। इसके बाद से विमानन उद्योग ने भी सबक लिया और सभी खिड़कियों और यहां तक कि दरवाजों के कोनों को भी गोल आकार का बना दिया गया। यही वजह है कि आज आप जहाजों से लेकर हवाई जहाजों तक, हर जगह गोल खिड़कियां ही देखते हैं।
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