दिल्ली हाई कोर्ट के एक फैसले से स्वामी रामदेव की कंपनी पतंजलि आयुर्वेद को जोरदार झटका लगा है। कोर्ट ने अपने आदेश में कहा कि पतंजलि, डाबर च्यवनप्राश के खिलाफ कोई भ्रामक विज्ञापन नहीं चला सकेगी। डाबर की तरफ से दायर की गई याचिका पर सुनवाई करते हुए दिल्ली हाई कोर्ट भ्रामक विज्ञापन पर अंतरिम रोक लगा दिया है।
पतंजलि ने अपने विज्ञापन मे दावा किया है कि आयुर्वेद और शास्त्र ग्रंथों के मुताबिक सिर्फ पतंजलि ही च्यवनप्राश बनाता है। डाबर ने पतंजलि आयुर्वेद के खिलाफ मुकदमा दायर किया था, जिसमें आरोप लगाया गया था कि पतंजलि आयुर्वेद उसके खिलाफ अपमानजनक विज्ञापन चला रहा है।
The Delhi High Court on Thursday restrained #Patanjali Ayurved from running advertisements allegedly disparaging to Dabur's Chyavanprash product.
— Live Law (@LiveLawIndia) July 3, 2025
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दिल्ली हाईकोर्ट ने पतंजलि आयुर्वेद को डाबर इंडिया के च्यवनप्राश उत्पादों के खिलाफ कोई भी अपमानजनक टीवी विज्ञापन प्रसारित करने से रोक दिया है। यह आदेश डाबर इंडिया की उस याचिका पर आया है, जिसमें पतंजलि के कथित मानहानिकारक विज्ञापन अभियान पर अंतरिम रोक लगाने की मांग की गई थी। कोर्ट ने डाबर की अंतरिम रोक लगाने की मांग को स्वीकार कर लिया और पतंजलि को आगे ऐसे विज्ञापन प्रसारित करने से मना कर दिया। डाबर ने अंतरिम राहत के लिए याचिका दायर की थी और कोर्ट ने पतंजलि को समन और नोटिस जारी किए थे।
विज्ञापन में कहा गया है जिनको आयुर्वेद और वेदो का ज्ञान नहीं है, चरक, सुश्रुत, धनवंतरी और च्यवनऋषि की परंपरा में ‘मूल’ च्यवनप्राश कैसे बना पाएंगे। डाबर ने विज्ञापन और उसके कुछ संदर्भों पर आपत्ति जताई, जिसमें 40 जड़ी-बूटियों वाले च्यवनप्राश को साधारण कहा गया था।
यह तर्क दिया गया कि बयान स्पष्ट रूप से डाबर के उत्पाद की ओर इशारा करता है, जो खुद को 40+ जड़ी-बूटियों का उपयोग करने वाला बताता है और च्यवनप्राश बाजार के 60% से अधिक हिस्से को नियंत्रित करता है। डाबर ने कहा कि यह टिप्पणी तीन तरह से अपमानजनक थी। इसने पतंजलि के अपने फार्मूले के बारे में गलत विचार दिया, सुझाव दिया कि डाबर आयुर्वेदिक परंपराओं का ठीक से पालन नहीं करता है, और डाबर के उत्पाद को निम्नस्तरीय बना दिया।