राजस्थान में बच्चों की मौत से जुड़े कफ सिरप के मामले ने पूरे राज्य को हिलाकर रख दिया है, जहां छोटे-छोटे बच्चे खांसी की दवा पीने के बाद अचानक बीमार पड़ गए और कुछ की जान तक चली गई। सरकार ने फौरन दवा की सप्लाई रोक दी और सैंपल जांच के लिए भेजे, जिसकी रिपोर्ट आने के बाद डेक्सट्रोमेथॉरफन हाइड्रोब्रोमाइड वाली सिरप बनाने वाली केसन्स फार्मा कंपनी को क्लीन चिट मिल गई है। लेकिन स्वास्थ्य मंत्री ने साफ-साफ कह दिया कि अगर माता-पिता बिना डॉक्टर की सलाह के दवा देते हैं तो सारी जिम्मेदारी उनकी ही होगी, जिससे मामला और गरमा गया है।
बच्चों की मौत ने मचाई खलबली, परिवारों का दर्द
पिछले कुछ हफ्तों में राजस्थान के सीकर, भरतपुर और झुंझुनू जैसे जिलों से दुखद खबरें आईं, जहां सरकारी अस्पतालों में दी गई कफ सिरप पीने के बाद कम से कम तीन बच्चों की मौत हो चुकी है। सीकर में पांच साल का लड़का नितीश खांसी से पीड़ित था और दवा लेने के कुछ घंटों बाद उसकी हालत बिगड़ गई। भरतपुर में दो साल की बच्ची सम्राट जाटव को निजी अस्पताल में भर्ती करना पड़ा, लेकिन वह बच नहीं सकी। एक तीन साल का बच्चा भी गंभीर रूप से बीमार हो गया और इलाज के बावजूद बच न सकना। इनमें से ज्यादातर बच्चे मुख्यमंत्री की मुफ्त दवा योजना के तहत मिली दवा पर निर्भर थे। परिवारों ने बताया कि बच्चे को खांसी थी इसलिए डॉक्टर ने यह सिरप लिखा था, लेकिन दवा लेने के बाद बच्चों को उल्टी, दस्त और सांस लेने में तकलीफ हुई। डॉक्टरों ने तुरंत सैंपल इकट्ठा किए और जयपुर की ड्रग टेस्टिंग लैब भेजे, जहां से रिपोर्ट 3 अक्टूबर 2025 को आई।
जांच में कंपनी साफ निकली, लेकिन सावधानी बरती
सैंपल की जांच रिपोर्ट में पाया गया कि दवा में सभी नमक मानक सीमा के अंदर हैं और कोई मिलावट या खराबी नहीं मिली। स्वास्थ्य विभाग के अधिकारियों ने कहा कि केसन्स फार्मा की यह दवा सुरक्षित है, लेकिन कंपनी पर पहले भी सवाल उठे थे। 2023 और फरवरी 2025 में उसे दवा सुरक्षा नियम तोड़ने के लिए दंडित किया गया था। सिरप के दो बैच नंबर KL-25/147 और KL-25/148 की जांच हुई, जो साफ निकले। फिर भी सरकार ने सावधानी बरतते हुए पांच साल से कम उम्र के बच्चों के लिए इस सिरप को असुरक्षित घोषित कर दिया। अब डॉक्टरों को इसे छोटे बच्चों को न लिखने का निर्देश दिया गया है ताकि भविष्य में ऐसा कोई हादसा न हो।
अधिकारियों पर कार्रवाई, नकली दवाओं का खेल उजागर
जांच के दौरान ड्रग कंट्रोलर राजाराम शर्मा के खिलाफ गंभीर आरोप सामने आए, जहां उन पर नकली दवाओं के आंकड़ों में हेरफेर करने का इल्जाम लगा। उन्होंने लोकसभा और नीति आयोग को गलत डेटा भेजा था। विधानसभा में भी ऐसा ही करने की कोशिश की। विभागीय जांच में यह पकड़ा गया तो तुरंत उन्हें सस्पेंड कर दिया गया। सरकार ने कहा कि नकली दवा बनाने वाली कंपनियों को बचाने का यह प्रयास बर्दाश्त नहीं होगा। राजस्थान मेडिकल सर्विसेज कॉर्पोरेशन लिमिटेड ने केसन्स फार्मा की सभी 19 दवाओं की सप्लाई पर रोक लगा दी। यह कदम बच्चों की सुरक्षा के लिए उठाया गया। नेशनल सेंटर फॉर डिसीज कंट्रोल की टीम ने भी मध्य प्रदेश और राजस्थान में सैंपल लिए ताकि पूरी सच्चाई सामने आ सके।
मंत्री का बयान, विपक्ष की नाराजगी भड़की
स्वास्थ्य मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत ने प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा कि सरकारी अस्पतालों से दी गई दवाओं में कोई समस्या नहीं पाई गई। उन्होंने जोर देकर कहा कि माताएं-पिताएं अगर बाहर से दवा लाकर बिना सलाह दिए बच्चों को खिला देते हैं तो विभाग जिम्मेदार नहीं। मंत्री ने साफ किया कि योजना के तहत दी गई दवाएं पूरी जांच के बाद ही वितरित होती हैं। लेकिन कांग्रेस नेता अरिफ मसूद ने सरकार पर निशाना साधा। उन्होंने कहा कि मंत्री कंपनी का बचाव कर रहे हैं। जांच पूरी होने से पहले ही क्लीन चिट देना गलत है। उन्होंने बच्ची की मौत पर दुख जताया और कहा कि सरकार दवा कंपनियों से मिली हुई है। विपक्ष ने मांग की कि पूरी जांच हो और दोषियों को सजा मिले।
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