पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर में पिछले कई दिनों से जनता का गुस्सा सड़कों पर फूट पड़ा। महंगाई, बेरोजगारी और सरकारी लापरवाही से तंग लोगों ने जम्मू-कश्मीर जॉइंट अवामी एक्शन कमेटी (JKJAC) के नेतृत्व में आंदोलन शुरू किया। 29 सितंबर को प्रशासन से वार्ता विफल होने के बाद विरोध प्रदर्शन हिंसक हो गए। प्रदर्शनकारियों ने 38 मांगों की सूची सरकार को सौंपी थी, जिसमें बिजली दरें कम करने, स्वास्थ्य सुविधाओं में सुधार और प्रशासनिक भ्रष्टाचार पर कार्रवाई की मांगें प्रमुख थीं। हालात इतने बिगड़ गए कि पुलिस और सुरक्षा बलों से झड़पों में अब तक 10 से ज्यादा लोगों की मौत हो चुकी है और सैकड़ों घायल हुए हैं।
शहबाज शरीफ सरकार की घुटने टेकती रणनीति
लगातार बढ़ते दबाव और हिंसा के बीच प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ ने आखिरकार शांति वार्ता का रास्ता चुना। उन्होंने पूर्व प्रधानमंत्री राजा परवेज अशरफ के नेतृत्व में एक उच्चस्तरीय प्रतिनिधिमंडल मुजफ्फराबाद भेजा। दो दिनों की गहन बातचीत के बाद सरकार ने शनिवार को प्रदर्शनकारियों के साथ समझौते की घोषणा की। संसदीय कार्य मंत्री तारिक फजल चौधरी ने सोशल मीडिया पर लिखा कि “वार्ता सफल रही है और सभी प्रदर्शनकारी अब अपने घर लौट रहे हैं।” सरकार ने माना कि पीओके की जनता की मांगें जायज़ हैं और उनका समाधान प्राथमिकता से किया जाएगा।
प्रदर्शनकारियों की हुई जीत
सरकार और JKJAC के बीच हुए समझौते में 25 बिंदु शामिल हैं। इसमें हिंसा में मारे गए लोगों के परिजनों को मुआवजा, घायलों के इलाज के लिए तत्काल फंड जारी करने और किसी के खिलाफ आतंकवाद के तहत मामला दर्ज न करने का आश्वासन दिया गया है। इसके साथ ही केंद्र सरकार ने पीओके के दो क्षेत्रों, मुजफ्फराबाद और पुंछ, में नए शिक्षा बोर्ड बनाने, हर जिले में एमआरआई और सीटी स्कैन मशीनें उपलब्ध कराने और स्वास्थ्य सेवाओं के लिए 15 दिनों में धनराशि जारी करने का वादा किया है। बिजली व्यवस्था में सुधार के लिए 10 अरब पाकिस्तानी रुपये का विशेष फंड देने की घोषणा की गई। इसके अलावा मंत्रियों और सलाहकारों की संख्या घटाकर 20 करने तथा प्रशासनिक ढांचे को छोटा करने पर भी सहमति बनी।
विकास के वादों से शांति की उम्मीद
समझौते में कई विकास परियोजनाओं का भी जिक्र है। नीलम घाटी में दो नई सुरंगों के निर्माण की योजना पर काम शुरू किया जाएगा। साथ ही मीरपुर में एक अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डा बनाने का निर्णय लिया गया है, जिससे क्षेत्र के आर्थिक विकास को गति मिलने की उम्मीद है। संपत्ति हस्तांतरण पर कर को तीन महीने में पंजाब और खैबर पख्तूनख्वा के समान किया जाएगा। इन सभी बिंदुओं की निगरानी के लिए एक विशेष समिति गठित की गई है, जो तय समयसीमा में इन वादों के क्रियान्वयन की देखरेख करेगी। हालांकि, विशेषज्ञों का कहना है कि यह समझौता केवल अस्थायी राहत है, जब तक पाकिस्तान सरकार पीओके की वास्तविक समस्याओं को ईमानदारी से नहीं सुलझाती, तब तक असंतोष की आग पूरी तरह नहीं बुझेगी।
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