नेपाल ने बीते सप्ताह जिस तरह का राजनीतिक और सामाजिक संकट झेला, उसने पूरे देश को हिलाकर रख दिया। भ्रष्टाचार और सोशल मीडिया पर लगे प्रतिबंधों ने युवाओं को सड़क पर उतरने के लिए मजबूर कर दिया। सोमवार को हुए प्रदर्शनों में जहां 19 लोगों की मौत हुई, वहीं बाद में यह संख्या बढ़कर 51 तक पहुंच गई। प्रदर्शनकारियों का गुस्सा इतना बढ़ा कि उन्होंने प्रधानमंत्री कार्यालय तक पर धावा बोल दिया। इसी दबाव के चलते प्रधानमंत्री के. पी. शर्मा ओली को इस्तीफा देना पड़ा। इसके तुरंत बाद सरकार ने सोशल मीडिया से प्रतिबंध हटा लिया, जो विरोध का एक बड़ा कारण था।
कर्फ्यू के बाद जीवन हो रहा है सामान्य
काठमांडू घाटी और अन्य इलाकों में कई दिनों तक लगा कर्फ्यू अब हटा लिया गया है। दुकानों, सब्ज़ी मंडियों और मॉल्स के खुलने से धीरे-धीरे जीवन पटरी पर लौटता दिखाई दे रहा है। खास बात यह है कि इस बार सिर्फ सामान्य गतिविधियां ही नहीं, बल्कि सफाई और पुनर्निर्माण के प्रयास भी जोर-शोर से किए जा रहे हैं। सरकारी इमारतें, जिन्हें प्रदर्शनकारियों ने नुकसान पहुंचाया था, उनकी मरम्मत और रंगाई-पुताई शुरू हो गई है। आम नागरिकों के साथ-साथ सेना भी अब केवल सुरक्षा पर नहीं, बल्कि सामान्य स्थिति बहाल करने पर ध्यान केंद्रित कर रही है।
जनरेशन Z की भूमिका, विद्रोह से नेतृत्व तक
इन प्रदर्शनों की सबसे बड़ी खासियत रही ‘जनरेशन Z’ की सक्रियता। 1997 से 2012 के बीच जन्मे युवाओं ने न केवल विरोध का नेतृत्व किया, बल्कि अब सफाई अभियान और सुधार की पहल भी संभाल ली है। शनिवार को जब कर्फ्यू हटाया गया, तो इन्हीं युवाओं ने सबसे पहले सड़कों और डिवाइडरों की सफाई शुरू की। यह तस्वीर इस बात का प्रतीक है कि नई पीढ़ी केवल विरोध तक सीमित नहीं रहना चाहती, बल्कि बदलाव का जिम्मा खुद उठाने को तैयार है। नेपाल पुलिस की रिपोर्ट बताती है कि मारे गए लोगों में एक भारतीय नागरिक भी शामिल था, जिससे यह संकट सीमाओं से परे असर डालने वाला साबित हुआ।
सुशीला कार्की पर युवाओं की टिकी उम्मीदें
नेपाल के सामने अब सबसे बड़ी चुनौती स्थिरता और भरोसा कायम करने की है। इसी को ध्यान में रखते हुए पूर्व चीफ जस्टिस सुशीला कार्की को अंतरिम प्रधानमंत्री नियुक्त किया गया है। उनसे उम्मीद की जा रही है कि वे आगामी चुनावों तक निष्पक्ष प्रशासन देंगी और हालात को स्थिर बनाएंगी। सेना सुरक्षा व्यवस्था बनाए हुए है, लेकिन धीरे-धीरे यह जिम्मेदारी नागरिक प्रशासन के हाथों में वापस सौंपी जाएगी। सूत्रों के अनुसार, यह संकट नेपाल के लोकतंत्र के लिए एक चेतावनी भी है और एक अवसर भी, जहां नई पीढ़ी राजनीति में नई ऊर्जा और पारदर्शिता की मांग कर रही है। आने वाले चुनावों में यह लहर किस रूप में सामने आती है, यह नेपाल के भविष्य को तय करेगा।
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