डोनेशिया में खसरे की बीमारी ने मदुरा द्वीप को अपनी चपेट में ले लिया है। पिछले नौ महीनों से यह समस्या बढ़ती जा रही है। 2,600 से ज्यादा बच्चे इस बीमारी से प्रभावित हो चुके हैं। दुख की बात यह है कि 20 बच्चों की मौत भी हो चुकी है। स्वास्थ्य वाले लोग गांव-गांव घूमकर बच्चों को टीका लगा रहे हैं। लेकिन कई लोग धार्मिक वजह से टीका लगवाने से मना कर रहे हैं। वे हलाल वैक्सीन की मांग कर रहे हैं क्योंकि मौजूदा टीके में सूअर से बना जेलाटिन होने का शक है। यह कहानी जकार्ता से शुरू होती है जहां समस्या सबसे ज्यादा है।
खसरे का बढ़ता खतरा
मदुरा द्वीप के सुनेप शहर में खसरा बहुत तेजी से फैल रहा है। मई से जुलाई 2025 तक यह बीमारी सबसे ज्यादा फैली। सुनेप के मोह अनवर अस्पताल में हर दिन सौ से ज्यादा मरीज आते थे। स्वास्थ्य वाले लोग मोटरसाइकिल पर नीले बॉक्स लेकर घर-घर जाते हैं। वे बच्चों को टीका देते हैं। सरकार ने 78,000 से ज्यादा टीके बांटने का लक्ष्य रखा है। लेकिन कई मां-बाप बच्चों को टीका नहीं लगवा रहे। उन्हें लगता है कि टीका उनके धर्म के खिलाफ है। इस वजह से बीमारी रुक नहीं रही। बच्चे बीमार पड़ रहे हैं और अस्पताल भर रहे हैं। स्वास्थ्य वाले लोग दिन-रात मेहनत कर रहे हैं लेकिन लोगों का डर कम नहीं हो रहा।
हलाल वैक्सीन की चिंता
खसरे के टीके में जेलाटिन का इस्तेमाल होता है। यह जेलाटिन टीके को सुरक्षित रखता है। लेकिन यह ज्यादातर सूअर से बनता है। इस्लाम में सूअर को हराम माना जाता है। 2018 में इंडोनेशिया के उलेमा परिषद ने कहा था कि ऐसी वैक्सीन हराम है। लेकिन अगर कोई दूसरा तरीका न हो तो इसे इस्तेमाल कर सकते हैं। फिर भी सुनेप में कई लोग डरते हैं। वे अपने बच्चों को टीका नहीं देते। एक नर्स पुजियाती वह्युनी ने बताया कि उन्होंने अपनी बेटी को टीका लगवाया। लेकिन कई लोग धर्म की वजह से मना कर देते हैं। यह चिंता पूरे द्वीप पर फैल गई है। लोग सोचते हैं कि टीका उनके विश्वास के खिलाफ है। इस वजह से टीकाकरण का काम धीमा हो गया है। स्वास्थ्य वाले लोग समझाते हैं लेकिन सब नहीं मानते।
स्वास्थ्य कर्मियों की मेहनत
अगस्त 2025 से सुनेप में बड़ा टीकाकरण अभियान चल रहा है। स्वास्थ्य वाले लोग जैसे सिटी नूरजानाह और इंद्रा कुरनियावान स्कूल और गांव जाते हैं। वे मां-बाप से बात करते हैं। उन्हें टीके की जरूरत बताते हैं। 28 साल की आयु रेसा एटिका ने पहले अपने बेटे को टीका नहीं लगवाया। उन्हें हलाल न होने का डर था। लेकिन जब उन्होंने अस्पताल में कई बीमार बच्चों को देखा तो डर गईं। फिर उन्होंने अपने दो साल के बेटे को दूसरी डोज लगवाई। ऐसे कई लोग हैं जो पहले मना करते थे लेकिन अब मान रहे हैं। स्वास्थ्य टीम दिनभर काम करती है। वे लोगों को समझाती है कि टीका बच्चों की जान बचाता है। इस अभियान से कुछ फायदा हो रहा है लेकिन अभी बहुत काम बाकी है।
पिछले अनुभव और आंकड़े
इंडोनेशिया में पहले भी खसरा फैला था। 2018 में पापुआ प्रांत में दर्जनों बच्चों की मौत हुई। उस समय भी हलाल वैक्सीन की चिंता थी। इस वजह से टीकाकरण कम हुआ। विश्व स्वास्थ्य संगठन कहता है कि खसरा रोकने के लिए 95 प्रतिशत बच्चों को टीका लगना चाहिए। लेकिन 2024 में इंडोनेशिया में सिर्फ 82.3 प्रतिशत बच्चों को टीका लगा। यह लक्ष्य से कम है। इस वजह से बीमारी फिर फैल रही है। मदुरा द्वीप पर स्थिति खराब है। स्वास्थ्य वाले लोग आंकड़ों से समझाते हैं लेकिन कुछ लोग नहीं मानते। वे पुराने अनुभव से डरते हैं। सरकार को और ज्यादा कोशिश करनी पड़ रही है।
हलाल वैक्सीन की मांग
सुनेप के स्वास्थ्य अधिकारी अहमद सयामसुरी ने बताया कि कुछ इस्लामी विद्वान कहते हैं कि जरूरत में ऐसी वैक्सीन इस्तेमाल कर सकते हैं। लेकिन कई लोग सरकार से हलाल वैक्सीन मांग रहे हैं। स्थानीय लोग जैसे मुस्तफा चाहते हैं कि स्वास्थ्य मंत्रालय जल्दी हलाल टीका बनाए। यह इस्लाम के नियमों के मुताबिक हो। इससे लोगों का भरोसा बढ़ेगा। टीकाकरण तेज होगा। मदुरा द्वीप पर यह मांग जोर पकड़ रही है। स्वास्थ्य टीम इस पर काम कर रही है। लेकिन अभी वैक्सीन बदलना आसान नहीं है। लोग इंतजार कर रहे हैं। इस बीच बीमारी फैल रही है। बच्चे प्रभावित हो रहे हैं। सरकार को जल्दी कदम उठाना होगा।
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