समाजवादी पार्टी के बड़े नेता आजम खान 23 महीने बाद सीतापुर जेल से रिहा हो गए। सुबह 9 बजे उनकी रिहाई होने वाली थी, लेकिन कागजी काम और जुर्माने की राशि जमा करने में देरी हुई। इस वजह से रिहाई दोपहर तक टल गई। उनके बेटे अदीब आजम और सैकड़ों समर्थक जेल के बाहर उनका इंतजार कर रहे थे। जैसे ही आजम खान बाहर आए, समर्थकों ने नारे लगाए और उनका स्वागत किया। लेकिन उनकी रिहाई ने एक बार फिर भारतीय जेलों की बदहाल स्थिति पर सवाल उठाए। आइए जानते हैं कि भारत की जेलों में कैदियों की जिंदगी कैसी है।
जेलों में भीड़ की मार
भारत की जेलें हमेशा भीड़ से भरी रहती हैं। 2025 की इंडिया जस्टिस रिपोर्ट कहती है कि जेलों में औसतन 131% से ज्यादा भीड़ है। यानी, अगर जेल में 100 लोगों की जगह है, तो वहां 131 से ज्यादा कैदी ठूंसे हुए हैं। छोटे-छोटे कमरों में इतने लोग रहते हैं कि सोने और आराम करने की जगह भी नहीं मिलती। कई बार एक कमरे में 20-30 कैदी रहते हैं। इस वजह से निजता नाम की चीज नहीं रहती। दिल्ली की तिहाड़ और उत्तर प्रदेश की सीतापुर जैसी सेंट्रल जेलों में यह समस्या और गंभीर है। कैदियों को रात में जमीन पर सोना पड़ता है, क्योंकि बिस्तर कम पड़ जाते हैं।
खाने की खराब हालत
जेल में खाना कैदियों के लिए बहुत बड़ी समस्या है। ज्यादातर जेलों में रोटी, दाल और एक सब्जी दी जाती है। लेकिन खाने की मात्रा और गुणवत्ता अक्सर खराब होती है। कई बार खाना इतना कम होता है कि कैदी भूखे रह जाते हैं। खराब पोषण की वजह से कैदी कमजोर हो जाते हैं। कुछ जेलों में खाना बनाने की जगह गंदी होती है, जिससे बीमारियां फैलने का खतरा रहता है। साफ पानी भी मुश्किल से मिलता है। कई कैदियों को गंदा पानी पीना पड़ता है, जिससे पेट की बीमारियां हो जाती हैं। कैदियों का कहना है कि खाना खाने लायक नहीं होता, लेकिन उनके पास कोई और रास्ता नहीं होता।
साफ-सफाई का बुरा हाल
जेलों में हवा और सफाई की हालत भी बहुत खराब है। पुरानी जेलों में छोटी खिड़कियां होती हैं, जिससे हवा नहीं आती। गर्मी और उमस में कैदियों को घुटन होती है। कई जेलों में फर्श गीला रहता है, जिससे बीमारियां फैलती हैं। बाथरूम और शौचालय की हालत भी खराब है। सैकड़ों कैदियों के लिए गिनती के शौचालय होते हैं। इस वजह से साफ-सफाई की समस्या और बढ़ जाती है। कैदियों को कई बार गंदे बाथरूम इस्तेमाल करने पड़ते हैं, जिससे उनकी सेहत पर बुरा असर पड़ता है।
स्वास्थ्य सुविधाओं की कमी
जेलों में स्वास्थ्य सेवाएं लगभग न के बराबर हैं। 2025 की इंडिया जस्टिस रिपोर्ट के मुताबिक, देश की जेलों में सिर्फ 25 मनोवैज्ञानिक हैं, जो 5.7 लाख कैदियों के लिए हैं। यानी एक मनोवैज्ञानिक पर 22,929 कैदी। मेडिकल स्टाफ की 43% कमी है। अगर किसी कैदी को गंभीर बीमारी या चोट लगती है, तो उसे समय पर अस्पताल नहीं ले जाया जाता। मानसिक स्वास्थ्य की स्थिति और भी खराब है। छोटी जगह में लंबे समय तक रहने से कैदियों में तनाव और डिप्रेशन बढ़ता है। कई कैदी मानसिक समस्याओं से जूझते हैं, लेकिन उनकी मदद के लिए कोई नहीं होता।
जेलों का कठिन माहौल
जेल का माहौल कैदियों के लिए बहुत मुश्किल होता है। भीड़, खराब खाना, गंदगी और स्वास्थ्य सुविधाओं की कमी जिंदगी को और कठिन बनाती है। आजम खान जैसे बड़े नेता भी इन हालात से नहीं बच पाते। उनकी रिहाई ने जेलों की बदहाली को फिर से सबके सामने ला दिया। भारतीय जेलों में सुधार की जरूरत अब पहले से कहीं ज्यादा है।
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