अयोध्या में इस बार दशहरे के मौके पर रिकॉर्ड ऊंचाई वाले रावण, कुंभकर्ण और मेघनाद के पुतलों के दहन की तैयारी चल रही थी। राम कथा पार्क में फिल्म कलाकार रामलीला समिति ने 240 फुट ऊंचा रावण और 190 फुट ऊंचे मेघनाद व कुंभकर्ण के पुतले बनवाए थे। लेकिन दशहरे से ठीक पहले पुलिस ने इन पर रोक लगा दी। पुलिस अधिकारियों का कहना है कि इतनी बड़ी ऊंचाई वाले पुतलों के दहन से सुरक्षा खतरे में पड़ सकती है। भीड़ नियंत्रण, आग लगने का जोखिम और आसपास की संरचनाओं को नुकसान पहुंचने की आशंका के चलते अनुमति नहीं दी गई। साथ ही आयोजकों ने प्रशासन से औपचारिक अनुमति भी नहीं ली थी, जिसकी वजह से कार्रवाई और भी जरूरी हो गई।
महीनों की मेहनत और लाखों का खर्च हुआ बेकार
रामलीला समिति के अनुसार, पिछले एक महीने से देशभर के कारीगर दिन-रात मेहनत करके इन पुतलों को तैयार कर रहे थे। खासतौर पर मध्य प्रदेश और राजस्थान से आए कलाकारों ने बांस, कपड़े और आतिशबाजी की मदद से इन भव्य पुतलों का निर्माण किया। आयोजकों का कहना है कि इस काम में हजारों रुपये खर्च हो चुके हैं। समिति के अध्यक्ष सुभाष मलिक का मानना है कि दशहरे में तैयार किए गए रावण का दहन न होना अशुभ माना जाता है। उनका कहना है कि इतने बड़े स्तर की तैयारी के बाद अंतिम समय पर रोक लगाना कारीगरों और श्रद्धालुओं दोनों के लिए निराशाजनक है।
धार्मिक मान्यता और प्रशासन की चुनौतियां
भारत में दशहरे पर रावण दहन सिर्फ परंपरा नहीं, बल्कि असत्य पर सत्य की विजय का प्रतीक है। खासतौर पर अयोध्या जैसे धार्मिक स्थल पर इसका आयोजन सांस्कृतिक और धार्मिक महत्व रखता है। लेकिन जब कार्यक्रम इतने बड़े पैमाने पर हो, तो प्रशासनिक चुनौतियां भी बढ़ जाती हैं। ऊंचाई और आकार के कारण आगजनी और भगदड़ का खतरा कई गुना बढ़ सकता है। ऐसे में पुलिस का मानना है कि सुरक्षा से समझौता नहीं किया जा सकता। दूसरी ओर, आयोजक इसे धार्मिक आस्था और परंपरा से जुड़ा मामला मानते हुए पीएम नरेंद्र मोदी और सीएम योगी आदित्यनाथ से हस्तक्षेप की अपील कर रहे हैं।
परंपरा और सुरक्षा के बीच संतुलन की जरूरत
यह विवाद एक बड़े सवाल को जन्म देता है, क्या परंपरा निभाने के लिए सुरक्षा को नजरअंदाज किया जा सकता है? या फिर आधुनिक समय में परंपराओं का पालन करते हुए सुरक्षा के नए मानक तय करना ही सही रास्ता है? अयोध्या जैसे संवेदनशील शहर में लाखों श्रद्धालुओं की भीड़ जुटती है, ऐसे में किसी भी दुर्घटना की आशंका को हल्के में नहीं लिया जा सकता। विशेषज्ञ मानते हैं कि भव्यता के साथ-साथ जिम्मेदारी भी जरूरी है। शायद समाधान यह हो कि पुतलों का आकार कम रखा जाए और तकनीकी मानकों के तहत ही अनुमति मिले। तभी परंपरा भी निभेगी और सुरक्षा भी सुनिश्चित होगी।
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