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रावण भक्त ‘लंकेश’ का हुआ 68 वर्ष की उम्र में निधन, जानिए संतोष नामदेव की अनसुनी कहानी

मध्य प्रदेश के जबलपुर के पाटन में रहने वाले संतोष नामदेव, जिन्हें लोग प्यार से ‘लंकेश’ कहते थे, का 68 वर्ष की उम्र में निधन हो गया। रावण को अपना आराध्य मानने वाले संतोष की यह भक्ति उनकी अनोखी पहचान बन गई थी।

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जबलपुर जिले की पाटन तहसील के बाजार वार्ड में रहने वाले संतोष नामदेव, जिन्हें लोग “लंकेश” के नाम से जानते थे, का शनिवार को 68 वर्ष की उम्र में निधन हो गया। संतोष का जीवन आम नहीं था, बल्कि उनकी सोच और भक्ति ने उन्हें पूरे क्षेत्र में अलग पहचान दिलाई। वे पिछले पांच दशकों से रावण को अपना आराध्य मानकर उसकी पूजा करते थे। हर मिलने वाला उन्हें “जय लंकेश” कहकर मिलता था। नवरात्रि के दौरान वे हर साल रावण की भव्य प्रतिमा स्थापित करते थे, जिसे देखने के लिए दूर-दूर से लोग आते थे। इस परंपरा में पूरा परिवार और ग्रामवासी भी उनका सहयोग करते थे।

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विसर्जन से पहले ही थम गई सांसें

लंकेश की भक्ति केवल पूजा तक सीमित नहीं थी, बल्कि वे रावण से जुड़ी हर परंपरा को जीवित रखते थे। विजयादशमी के अगले दिन वे रावण दहन के अवशेषों को एकत्र कर शरद पूर्णिमा पर विधिवत पूजा के साथ जल में विसर्जित करते थे। यह उनके लिए श्रद्धा का सबसे बड़ा पर्व होता था। लेकिन इस बार संतोष नामदेव विसर्जन से पहले ही दुनिया को अलविदा कह गए। उनकी मृत्यु से गांव में गहरा सन्नाटा छा गया। लोग कहते हैं कि “लंकेश” के बिना इस बार का विसर्जन अधूरा रहेगा। उनके मित्र और नगर पार्षद दीपक जैन ने बताया कि संतोष की अंतिम इच्छा देहदान की थी, लेकिन परिवार की सहमति न मिलने से यह पूरी नहीं हो सकी।

रामलीला से शुरू हुई रावण भक्ति की राह

संतोष नामदेव का रावण से जुड़ाव बचपन में ही शुरू हो गया था। वे बचपन में रामलीला देखने जाया करते थे और बाद में उन्हें मंच पर सैनिक का किरदार निभाने का मौका मिला। कुछ वर्षों बाद जब उन्हें रावण का किरदार निभाने का अवसर मिला, तो उनकी आवाज़, संवाद और व्यक्तित्व ने सभी को प्रभावित कर दिया। इसी किरदार ने उनके भीतर रावण के प्रति सम्मान और भक्ति का भाव जाग्रत किया। उन्होंने रावण के चरित्र को गहराई से समझा और उसकी विद्या, शक्ति और तेज से प्रभावित होकर उसकी पूजा शुरू कर दी। इतना ही नहीं, उन्होंने अपने बेटों के नाम भी रावण के पुत्रों पर रखे, मेघनाथ और अक्षय।

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बुराई नहीं, ज्ञान का प्रतीक था रावण

संतोष नामदेव का कहना था कि “जिस रावण को मारने के लिए स्वयं भगवान विष्णु को अवतार लेना पड़ा, वह साधारण नहीं हो सकता।” उनके अनुसार, रावण जितना तेजस्वी, ज्ञानी और बलशाली कोई नहीं था। वे कहते थे कि रावण में दोष जरूर थे, लेकिन उससे भी बड़ी उसकी विद्या और तपस्या थी। संतोष मानते थे कि रावण ने जो भी किया, वह अपने कुल के उद्धार के लिए किया। उनका कहना था कि रावण ने माता सीता का अपहरण किया जरूर, लेकिन उन्हें सम्मान के साथ अशोक वाटिका में रखा, जहां कोई नर या राक्षस तक प्रवेश नहीं कर सकता था। संतोष का जीवन रावण की भक्ति, विद्या और मर्यादा का प्रतीक बन गया।

Keywords: Jabalpur News, Lankesh Santosh Namdev, Ravan Bhakt, Madhya Pradesh, Dussehra Tradition, Unique Devotion, Human Interest Story

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