अधिकतर लोग मानते हैं कि चादर तभी बदलनी चाहिए जब उस पर दाग-धब्बे दिखाई दें, लेकिन विशेषज्ञ इससे सहमत नहीं हैं। दरअसल, रोज़मर्रा में हमारी चादर पर पसीना, मृत त्वचा और धूल जमती रहती है, जो संक्रमण का कारण बन सकती है। घर को साफ-सुथरा रखने पर लोग ध्यान तो देते हैं, मगर अक्सर बिस्तर की चादर बदलने की आदत को नज़रअंदाज़ कर देते हैं।
विशेषज्ञ क्या कहते हैं?
स्वास्थ्य विशेषज्ञों का मानना है कि चादर को हफ्ते में कम से कम एक बार बदलना ज़रूरी है। गर्मियों के मौसम में जब पसीना ज़्यादा आता है, तब इसे 3 से 4 दिन में बदलना और भी फायदेमंद होता है। इससे बैक्टीरिया और फंगस पनपने का खतरा काफी हद तक कम हो जाता है।
- अगर चादर लंबे समय तक नहीं बदली जाती, तो इससे कई तरह की दिक्कतें हो सकती हैं, जैसे
- त्वचा संबंधी समस्याएं, एलर्जी, खुजली और लाल चकत्ते
- सांस की बीमारियां, धूल और जीवाणुओं के कारण होने वाले संक्रमण बच्चों और पालतू जानवरों वाले घरों में चादर जल्दी गंदी होती है, इसलिए हर 2–3 दिन में बदलना बेहतर माना जाता है।
सर्दियों में भी लापरवाही न करें
ठंड के मौसम में लोग अक्सर सोचते हैं कि पसीना कम आता है, इसलिए चादर बार-बार बदलने की ज़रूरत नहीं है। लेकिन यह गलतफहमी है, क्योंकि मृत त्वचा हर मौसम में झड़ती है और वही बैक्टीरिया व धूल के कणों के लिए भोजन का काम करती है।
सिर्फ चादर बदलना ही पर्याप्त नहीं है, उसे सही तरीके से धोना भी ज़रूरी है।गर्म पानी और डिटर्जेंट में धोएं। एंटीसेप्टिक लिक्विड का इस्तेमाल करें।धूप में सुखाना सबसे अच्छा विकल्प है, क्योंकि सूर्य की किरणें प्राकृतिक कीटाणुनाशक का काम करती हैं।
नियमित रूप से चादर बदलना और उसे सही तरीके से साफ करना न केवल संक्रमण और एलर्जी से बचाता है, बल्कि घर में स्वच्छता और ताजगी भी बनाए रखता है।
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