भारत और अमेरिका के रिश्ते में पिछले कई दिनों से उतार चढ़ाव दिख रहे हैं। जहां एक तरफ दोनों देशों के बीच आने वाले दिनों में रिश्ते सामान्य होने के संकेत मिले और कुछ दिनों में दोनों देशों के बीच ट्रेड डील होने की संभावना जताई जा रही थी। इससे पहले अमेरिका ने एक बार फिर भारत को बड़ा झटका दे दिया है। अमेरिका ने ईरान के चाबहार पोर्ट पर दी जा रही छूट को खत्म करने का एलान कर दिया है, जिससे भारत के लिए एक बड़ी चुनौती खड़ी हो गई है। यह फैसला 29 सितंबर 2025 से लागू होगा, जिसके बाद इस बंदरगाह से जुड़े काम करने वाली कंपनियों पर अमेरिकी सरकार जुर्माना लगाएगी। अमेरिका का यह कदम ऐसे समय में आया है जब भारत और अमेरिका के बीच व्यापार समझौते की उम्मीद की जा रही थी।
विदेश मंत्रालय (MEA) ने दिया जवाब
ईरान के चाबहार बंदरगाह को लेकर अमेरिकी फैसले पर विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता रणधीर जायसवाल ने कहा, “चाबहार पर अमेरिकी फैसले का भारत अध्ययन कर रहा है। हम लोग यह पता लगा रहे हैं कि भारत पर इसका प्रभाव कैसे पड़ेगा.”
भारत के लिए चाबहार पोर्ट क्यों है महत्वपूर्ण?
चाबहार पोर्ट भारत के लिए “गेटवे टू एशिया” के रूप में काम करता है। यह भारत को सीधे अफगानिस्तान, मध्य एशिया, रूस और यूरोप जैसे देशों से जोड़ता है। इस पोर्ट के बिना, भारत को इन क्षेत्रों तक पहुंचने के लिए पाकिस्तान पर निर्भर रहना पड़ता था, जिससे व्यापार और रणनीतिक पहुंच में मुश्किलें आती थीं। चाबहार पोर्ट ने भारत को पाकिस्तान से अलग एक वैकल्पिक मार्ग प्रदान किया है, जो इसे सामरिक दृष्टि से बेहद महत्वपूर्ण बनाता है।
भारत और ईरान के बीच हालिया समझौता
इसी साल मई में, भारत ने चाबहार पोर्ट के विकास और परिचालन के लिए ईरान के साथ 10 साल का एक अहम समझौता किया था। इस समझौते के तहत, भारत इस बंदरगाह के बुनियादी ढांचे को मजबूत करने के लिए 250 मिलियन डॉलर का ऋण देने वाला था। इसके अलावा, भारतीय कंपनियों ने बंदरगाह की क्षमता को बढ़ाने और इसे ईरानी रेलवे नेटवर्क से जोड़ने की भी योजना बनाई थी।
अमेरिकी फैसले का असर
अमेरिका के इस फैसले से भारत की चाबहार पोर्ट से जुड़ी योजनाओं पर गहरा असर पड़ सकता है। जिन भारतीय कंपनियों ने इस पोर्ट में निवेश करने या इसका उपयोग करने की योजना बनाई थी, उन्हें अब अमेरिकी प्रतिबंधों का सामना करना पड़ सकता है। इससे चाबहार पोर्ट के विकास और भारत की मध्य एशिया तक पहुंच की रणनीति बाधित हो सकती है। अब देखना यह है कि भारत इस चुनौती से कैसे निपटता है और क्या वह अमेरिका के साथ कूटनीतिक स्तर पर कोई समाधान निकाल पाता है।
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