सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में उत्तर प्रदेश से जुड़े एक मामले की सुनवाई के दौरान स्पष्ट किया कि अदालतें किसी भी स्थिति में वसूली (रिकवरी) एजेंट की तरह काम नहीं कर सकतीं। पीठ ने कहा कि अक्सर पक्षकार अपने बकाया धन की वसूली के लिए सीधे आपराधिक मुकदमे दर्ज करा देते हैं और विवाद को गैर-जरूरी तौर पर ‘क्राइम’ का रूप दे देते हैं। जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस एन. कोटिश्वर सिंह की बेंच ने टिप्पणी की कि गिरफ्तारी की धमकी देकर या अपहरण जैसे आरोप लगाकर ऋण की वसूली करना न केवल गलत है बल्कि यह न्यायिक प्रणाली के दुरुपयोग का उदाहरण है। अदालत का मानना है कि इस तरह के मामलों में वास्तविक विवाद केवल दिवानी होता है, जिसे कानूनी तरीके से हल किया जाना चाहिए।
पुलिस की दुविधा और अदालत की समझ
सुनवाई के दौरान उत्तर प्रदेश सरकार की ओर से अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल के. एम. नटराज ने बताया कि ऐसे मामलों में पुलिस अक्सर कठिनाई में पड़ जाती है। यदि प्राथमिकी दर्ज नहीं की जाती, तो अदालत पुलिस पर सुप्रीम कोर्ट के 2013 के ललिता कुमारी केस का पालन न करने का आरोप लगाती है। वहीं, यदि एफआईआर दर्ज कर ली जाती है, तो पुलिस पर पक्षपात या अनुचित कार्रवाई के आरोप लगते हैं। अदालत ने इस स्थिति को स्वीकार करते हुए कहा कि पुलिस को विवेकपूर्ण निर्णय लेना चाहिए और यह समझना चाहिए कि मामला वास्तविक रूप से दीवानी है या आपराधिक। यह संतुलन बनाए रखना न्यायिक व्यवस्था की विश्वसनीयता के लिए आवश्यक है।
गिरफ्तारी से पहले विवेक के इस्तेमाल पर जोर
सुप्रीम कोर्ट ने पुलिस को सलाह दी कि किसी भी व्यक्ति की गिरफ्तारी से पहले जांच अधिकारी यह जरूर परखे कि मामला वास्तव में किस श्रेणी में आता है। जस्टिस सूर्यकांत ने कहा कि आपराधिक कानून का इस तरह दुरुपयोग न्यायिक प्रणाली पर सीधा आघात है और इसे रोकना बेहद जरूरी है। अदालत का कहना है कि इस प्रवृत्ति से न केवल पुलिस तंत्र पर दबाव बढ़ता है बल्कि न्यायपालिका पर भी अनावश्यक बोझ पड़ता है। यदि धन वसूली जैसे मुद्दों में आपराधिक मुकदमेबाजी को बढ़ावा दिया जाता रहा, तो इसका असर न्याय वितरण की गति और निष्पक्षता पर पड़ेगा।
सुधार के लिए सुप्रीम कोर्ट का सुझाव
पीठ ने इस समस्या के समाधान के लिए एक अहम सुझाव भी दिया। अदालत ने कहा कि प्रत्येक जिले में एक नोडल अधिकारी नियुक्त किया जा सकता है, जो आमतौर पर सेवानिवृत्त जिला न्यायाधीश हो। ऐसे नोडल अधिकारी की राय लेकर पुलिस यह तय कर सकेगी कि कोई विवाद दीवानी है या आपराधिक। इससे पुलिस पर निर्णय लेने का दबाव कम होगा और न्यायिक प्रणाली का दुरुपयोग भी रुकेगा। सुप्रीम कोर्ट ने नटराज से कहा कि वह इस सुझाव पर सरकार की राय लेकर दो सप्ताह में अदालत को अवगत कराएं। अदालत ने अंत में सख्त टिप्पणी करते हुए कहा कि न्यायपालिका का काम न्याय करना है, न कि पक्षकारों के लिए धन वसूली का जरिया बनना।
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