अमेरिका ने हाल ही में एच-1बी वीजा नियमों में कई महत्वपूर्ण बदलाव किए हैं। इसमें वीजा की फीस बढ़ाने और चयन प्रक्रिया को कठिन बनाने जैसी चीजें शामिल हैं। एच-1बी वीजा का इस्तेमाल करने वाले आधे से ज्यादा लोग भारतीय हैं, इसलिए इसका सीधा असर भारतीय युवाओं पर पड़ता है। एच-1बी वीजा पाने के लिए जरूरी है कि आपके पास किसी अमेरिकी कंपनी का ऑफर लेटर हो। ऐसे में अमेरिका की ओर से नियमों में बदलाव के बाद कई युवा अब दूसरे ऑप्शंस की तलाश में हैं। इसी बीच चीन ने अपनी नई पहल ‘के-वीजा’ के माध्यम से प्रतिभाओं को आकर्षित करने का रास्ता खोल दिया है।
चीन का ‘के-वीजा’ और इसकी विशेषताएं
चीन ने 1 अक्टूबर 2025 को ‘के-वीजा’ लॉन्च किया, जिसका उद्देश्य STEM (साइंस, टेक्नोलॉजी, इंजीनियरिंग और मैथ्स) क्षेत्रों के छात्रों और पेशेवरों को अवसर देना है। इस वीजा के तहत चीन उन युवाओं को आकर्षित करना चाहता है, जो इस क्षेत्र में अध्ययन कर रहे हैं या इससे जुड़े हैं। एच-1बी वीजा के विपरीत, के-वीजा पाने के लिए किसी चीनी कंपनी का ऑफर लेटर जरूरी नहीं है। चीन इस वीजा के जरिए नए टैलेंट को देश में लाना चाहता है और उन्हें अध्ययन, शोध या पेशेवर काम के लिए मौका देना चाहता है।
घरेलू नाराजगी और चुनौतियां
हालांकि चीन में इस वीजा को लेकर युवाओं में विरोध भी देखने को मिल रहा है। सोशल मीडिया पर कई चीनी युवाओं ने अपनी नाराजगी जताई है, क्योंकि उनके अनुसार देश में कई स्नातक और मास्टर डिग्रीधारी बेरोजगार हैं। वर्तमान में चीन में बेरोजगारी दर लगभग 19 फीसदी है, इसलिए देश के कुछ युवाओं को यह कदम अस्वीकार्य लग रहा है। उनका तर्क है कि विदेशी प्रतिभाओं को अवसर देने से घरेलू युवाओं के रोजगार पर असर पड़ सकता है।
भारत के लिए विकल्प बन सकता है के-वीजा?
भारत और चीन के बीच हालिया समय में तनाव कम होने के संकेत दिखाई दे रहे हैं। दोनों देशों के बीच अब सीधी फ्लाइट सेवा भी शुरू हो रही है। ऐसे में भारत के युवाओं के लिए चीन का के-वीजा अमेरिका के एच-1बी वीजा का वैकल्पिक रास्ता बन सकता है। हालांकि, भाषा, संस्कृति और सामाजिक सामंजस्य जैसी चुनौतियां भी हैं। यह देखना होगा कि भारतीय प्रतिभाओं को चीन में रोजगार और अध्ययन के लिए किस हद तक सहजता से अवसर मिल पाते हैं और क्या वे वहां स्थानीय समाज में आसानी से घुल-मिल पाएंगे।
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