कलकत्ता हाईकोर्ट के एक अहम फैसले ने पश्चिम बंगाल की राजनीति में नया तूफान ला दिया है। कोर्ट ने शुक्रवार को केंद्र सरकार के उस आदेश को रद्द कर दिया, जिसमें बीरभूम जिले की दो महिलाओं और उनके परिवारों को “बांग्लादेशी प्रवासी” बताकर बांग्लादेश भेजने का निर्देश दिया गया था। तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) के राष्ट्रीय महासचिव अभिषेक बनर्जी ने इस फैसले का खुलकर स्वागत किया और इसे बंगालियों के खिलाफ चलाए जा रहे “सुनियोजित उत्पीड़न अभियान” का पर्दाफाश बताया।
कोर्ट का फैसला और टीएमसी की जीत
यह मामला बीरभूम की एक गर्भवती महिला समेत 6 लोगों से जुड़ा था, जिन्हें ‘बांग्लादेशी प्रवासी’ कहकर डिटेंशन और डिपोर्टेशन का आदेश दिया गया था। कलकत्ता हाईकोर्ट ने विदेशी क्षेत्रीय पंजीकरण कार्यालय (दिल्ली) द्वारा जारी किए गए इस आदेश को अवैध ठहराते हुए उन्हें तुरंत भारत वापस लाने का निर्देश दिया। अदालत ने इस मामले में केंद्र सरकार की अंतरिम राहत की याचिका भी खारिज कर दी, जो ममता बनर्जी सरकार और टीएमसी के लिए एक बड़ी राजनीतिक जीत मानी जा रही है।
अभिषेक बनर्जी का केंद्र पर तीखा हमला
हाईकोर्ट के फैसले के तुरंत बाद अभिषेक बनर्जी ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म ‘एक्स’ पर इसे “कानून की जीत” बताया। उन्होंने लिखा, “यह फैसला दिखाता है कि कैसे बंगालियों को योजनाबद्ध तरीके से निशाना बनाया गया। अब कानून ने अपना काम किया है और जो इसके लिए जिम्मेदार हैं, उन्हें अदालत, सार्वजनिक बहस और चुनावी मैदान-हर जगह जवाब देना होगा।” बनर्जी ने साफ किया कि 2026 के विधानसभा चुनावों में बंगाल के लोग ‘बहिष्कार और अपमान की राजनीति’ को बर्दाश्त नहीं करेंगे।
‘बंगाली अस्मिता’ बना चुनावी मुद्दा
टीएमसी नेता ने इस मुद्दे को बंगालियों की अस्मिता, गरिमा और अधिकारों से जोड़ा। हाल के दिनों में टीएमसी ने बंगालियों के खिलाफ कथित उत्पीड़न के मामलों को एक बड़ा राजनीतिक मुद्दा बनाया है और सड़कों पर भी विरोध प्रदर्शन किए हैं। बनर्जी ने दोहराया कि उनकी पार्टी बंगाल की जनता की सुरक्षा और उनकी भाषा की रक्षा के लिए हमेशा खड़ी रहेगी। यह हमला इस बात का साफ संकेत है कि टीएमसी आने वाले चुनावों में इस मुद्दे को एक बड़ा चुनावी हथियार बनाने की तैयारी में है।
BJP की सफाई
दूसरी ओर, बीजेपी ने इस मुद्दे पर सफाई देते हुए कहा है कि कार्रवाई केवल अवैध प्रवासियों के खिलाफ हो रही है, न कि बंगालियों के खिलाफ। बीजेपी का आरोप है कि टीएमसी इस मुद्दे को राजनीतिक रंग देकर लोगों को गुमराह कर रही है। हालांकि, हाईकोर्ट के इस फैसले ने टीएमसी को इस मुद्दे पर केंद्र सरकार और भाजपा को घेरने का एक मजबूत मौका दे दिया है।
इस पूरे विवाद ने बंगाल की राजनीति में एक नया मोर्चा खोल दिया है। बनर्जी का मानना है कि 2026 में बंगाल की जनता निर्णायक फैसला देगी और ‘भय व उत्पीड़न की राजनीति’ को समाप्त करेगी। हाईकोर्ट का यह आदेश न सिर्फ प्रभावित परिवारों के लिए राहत लेकर आया है, बल्कि इसने बंगाल में राजनीतिक बहस को भी तेज कर दिया है, जिसकी गूंज आने वाले चुनावों में सुनाई देना तय है।
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