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1985 का किस्सा: नीतीश कुमार ने प्यार में बाइक दौड़ाई, आधी रात ससुराल जाकर मंजू को सरप्राइज दिया, शादी की अनसुनी बातें

बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का रोमांटिक किस्सा 1985 का है, जब वे पहली बार विधायक बने और आधी रात बाइक दौड़ाकर पत्नी मंजू से मिलने पहुंचे। दहेज विरोधी नीतीश की शादी की कहानी दिल छू लेगी।

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नीतीश कुमार बिहार की राजनीति के सितारे हैं। नौ बार मुख्यमंत्री बन चुके नीतीश का जीवन उतार-चढ़ाव से भरा है। लेकिन उनकी जिंदगी का एक ऐसा पहलू है, जो राजनीति से कहीं अलग है। वह है उनकी पत्नी मंजू सिन्हा से जुड़ी प्यार भरी यादें। 1985 का वह साल था, जब नीतीश पहली बार विधायक बने। चुनाव जीतकर बख्तियारपुर लौटे तो स्वागत का जोरदार स्वागत हुआ। लेकिन भीड़ में उनकी नजरें अपनी पत्नी मंजू को ढूंढ रही थीं, जो मायके सेवदह चली गई थीं। सेवदह बख्तियारपुर से करीब 40 किलोमीटर दूर था।

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आधी रात का रोमांचक सफर

नीतीश को चैन न लगा। आधी रात को उन्होंने अपने एक साथी से कहा, बाइक निकालो, मंजू से मिलने चलते हैं। रात के सन्नाटे में बाइक दौड़ाते हुए वे सुबह-सुबह ससुराल पहुंच गए। मंजू ने दरवाजे पर उन्हें देखा तो आंखों में खुशी के आंसू आ गए। यह पल नीतीश के लिए भी अनमोल था। मंजू की मुस्कान देखकर सारी थकान गायब हो गई। यह किस्सा उनके दोस्त उदय कांत की किताब ‘नीतीश कुमार: अंतरंग दोस्तों की नजर से’ में दर्ज है।

शादी की शुरुआत और दहेज का विरोध

नीतीश और मंजू की शादी 1973 में हुई थी। नीतीश इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग की पढ़ाई कर रहे थे पटना कॉलेज में। आखिरी साल में परिवार वालों ने मंजू से रिश्ता तय किया। मंजू मगध महिला कॉलेज में पढ़ रही थीं। शादी मंडप में नीतीश ने पहली बार मंजू को देखा। उनकी सादगी और हंसी ने नीतीश को मोह लिया। लेकिन शादी से पहले ही विवाद हो गया। नीतीश के परिवार ने 22 हजार रुपये तिलक के लिए मांगे थे। नीतीश को जब पता चला तो वे गुस्से से लाल हो गए। उन्होंने दहेज लेने से साफ इनकार कर दिया। मंजू के परिवार को भी बुलाकर कहा कि वे बिना दहेज के शादी करेंगे। नीतीश का यह फैसला सामाजिक बुराई के खिलाफ उनकी सोच को दिखाता है।

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इंटर-कास्ट मैरिज का साहस

नीतीश कुर्मी समुदाय से हैं, जबकि मंजू कायस्थ। यह इंटर-कास्ट मैरिज उस समय के लिए बड़ी बात थी। दोनों परिवारों ने इसे स्वीकार किया, लेकिन नीतीश ने कभी जाति को बीच में नहीं आने दिया। शादी के बाद जीवन खुशहाल रहा। नीतीश राजनीति में व्यस्त होते हुए भी परिवार को समय देते रहे। मंजू उनका सहारा बनी रहीं। 2007 में मंजू का निधन हो गया, लेकिन नीतीश आज भी उनकी यादों को संजोए रखते हैं। हर साल वे मंजू की स्मृति में फूल चढ़ाते हैं।

राजनीति और प्यार का मेल

नीतीश का यह किस्सा बताता है कि राजनीति के कठोर मैदान में भी प्यार की कोमलता बनी रह सकती है। आधी रात बाइक दौड़ाने वाला नीतीश आज बिहार का मुख्यमंत्री है, लेकिन वह सरल इंसान आज भी वही है। बिहार चुनाव नजदीक हैं, ऐसे में नीतीश का निजी जीवन लोगों को करीब लाता है।

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