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लालबाग के राजा की चढ़ावे की नीलामी, श्रद्धालुओं की आस्था से जुटे 1.65 करोड़ रुपये

मुंबई के सबसे बड़े गणेशोत्सव पंडाल लालबागचा राजा में इस साल 108 स्वर्ण और रजत वस्तुओं की नीलामी से 1.65 करोड़ रुपये की राशि जुटी। हालांकि यह पिछले वर्षों की तुलना में कम है।

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मुंबई के परेल में स्थित लालबागचा राजा सार्वजनिक गणेशोत्सव मंडल में इस वर्ष भी भक्तों द्वारा चढ़ाई गई कीमती वस्तुओं की सार्वजनिक नीलामी हुई। बीते गुरुवार शाम 5 बजे से रात 10 बजे तक चली इस नीलामी में कुल 108 स्वर्ण और रजत वस्तुएं बेची गईं। इस नीलामी से 1.65 करोड़ रुपये की राशि प्राप्त हुई। हर वर्ष की तरह इस बार भी श्रद्धालु इन वस्तुओं को प्रसाद के रूप में हासिल करने के लिए बोली लगाने पहुंचे और माहौल भक्ति और उत्साह से भर गया।

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सोने की ईंट ने तोड़ा रिकॉर्ड

इस साल की नीलामी में सबसे आकर्षक वस्तु 100 ग्राम की सोने की ईंट रही, जिसे भक्त राजेंद्र लांजवाल ने 11.31 लाख रुपये में खरीदा। मंडल के अध्यक्ष बालासाहेब कांबले ने जानकारी दी कि सोने-चांदी की कीमतों में लगातार बढ़ोतरी का असर नीलामी में दिखाई दिया। फिलहाल 24 कैरेट सोने का भाव 1,12,000 रुपये प्रति 10 ग्राम तक पहुंच चुका है, जबकि पिछले वर्ष यह लगभग 75,000 रुपये था। कीमतों में आई 40% से अधिक की बढ़ोतरी के चलते कुल संग्रह पिछले वर्षों की तुलना में कम रहा।

पिछले वर्षों से तुलना

लालबागचा राजा मंडल हर साल भक्तों से प्राप्त स्वर्ण और रजत दान की सार्वजनिक नीलामी करता है। 2024 में मंडल को 5.65 करोड़ रुपये नकद दान, 4.15 किलो सोना और 64.32 किलो चांदी प्राप्त हुई थी। उस वर्ष 990.6 ग्राम की सोने की चेन 69.31 लाख रुपये में नीलाम हुई थी। वहीं 2023 में 3.5 किलो सोना और 64 किलो चांदी दान में मिले थे, जिनकी नीलामी से 80.70 लाख रुपये प्राप्त हुए। इन आंकड़ों से साफ है कि इस साल की नीलामी पिछले वर्षों के मुकाबले कम राशि ला पाई।

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नवसाचा राजा की आस्था

लालबागचा राजा का यह 92वां वर्ष रहा और इसे ‘नवसाचा राजा’ यानी मनोकामना पूरी करने वाला राजा कहा जाता है। माना जाता है कि यहां की गई प्रार्थना अवश्य पूरी होती है। संतान प्राप्ति में समस्या झेल रहे दंपति यहां विशेष रूप से दर्शन के लिए आते हैं और संतान प्राप्ति के बाद वे चांदी का पालना दान करते हैं। बाद में यही पालना अन्य दंपतियों को प्रसाद स्वरूप नीलामी में मिलता है। इस परंपरा से न केवल भक्तों की आस्था जुड़ी है बल्कि सामाजिक और सांस्कृतिक धरोहर भी कायम रहती है।

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