Krishna Janmashtami: कृष्ण जन्माष्टमी का पर्व आने को है ऐसे में देशभर के मंदिरों और घरों में तैयारियां जोरों पर हैं। हर जगह सुंदर-सुंदर झांकियां सजाई जा रही हैं और बाल गोपाल के स्वागत के लिए खास भोग की तैयारियां हो रही हैं। परंपरागत रूप से जन्माष्टमी पर ‘छप्पन भोग’ का आयोजन किया जाता है, लेकिन इनमें सबसे प्रिय प्रसाद माना जाता है मक्खन और धनिया
पंजीरी।
धार्मिक मान्यता है कि जहां भी श्रीकृष्ण जन्मोत्सव मनाया जाता है, वहां धनिया पंजीरी का भोग अवश्य लगाया जाता है। यह न केवल स्वादिष्ट होती है, बल्कि बनाने में भी बेहद आसान है। हां, इसे तैयार करने से पहले रसोई की अच्छी तरह सफाई और पूरी स्वच्छता का ध्यान रखना जरूरी है। चलिए जानते हैं बाल गोपाल के सबसे प्रिय भोग बनाने की विधि ।
धनिया पंजीरी बनाने की विधि
सामग्री
ताजा धनिया पाउडर – 200 ग्राम
शुद्ध घी – 250 ग्राम
बादाम – 20 ग्राम
पिस्ता – 20 ग्राम
किशमिश – 20 ग्राम
चिरौंजी – 20 ग्राम
सूखा नारियल – 25 ग्राम
पीसी हुई चीनी – स्वादानुसार
गुलाब की सूखी पंखुड़ियां – सजावट के लिए
विधि
- सबसे पहले ताजी खड़ी धनिया लें, इसे दो घंटे धूप में सुखाएं।
- एक साफ पैन में मध्यम आंच पर धनिया को सुनहरा और सुगंधित होने तक भूनें, जलने से बचाने के लिए लगातार चलाते रहें।
- ठंडा होने पर मिक्सी में बारीक पीस लें और पतली छलनी से छान लें।
- बादाम, पिस्ता और नारियल के छोटे टुकड़े कर लें, साथ में चिरौंजी और किशमिश को साफ कर लें।
- ये सभी मेवे पीसी हुई धनिया में मिलाएं और स्वादानुसार चीनी डालें।
- अंत में घी डालकर अच्छी तरह मिलाएं और ऊपर से गुलाब की सूखी पंखुड़ियां छिड़क दें।
इस तरह तैयार होगी सुगंध और स्वाद से भरपूर धनिया पंजीरी, जो बाल गोपाल को अर्पित करने के बाद प्रसाद के रूप में सभी को बांटी जाती है। इस वर्ष श्रीकृष्ण जन्माष्टमी 16 अगस्त 2025 को मनाई जाएगी। कृष्ण जन्मभूमि के रूप में प्रसिद्ध मथुरा में जन्माष्टमी का पर्व बेहद धूमधाम से मनाया जाता है। इस पावन अवसर पर श्रद्धालु दूर-दूर से कृष्ण जन्मस्थान मंदिर में दर्शन करने पहुंचते हैं। मंदिरों को आकर्षक सजावट से सजाया जाता है और चारों ओर भक्ति का अद्भुत माहौल होता है। त्योहार की रौनक बढ़ाने वाला एक प्रमुख आयोजन है दही हांडी या मटकी फोड़, जो भगवान कृष्ण की बाल लीलाओं का प्रतीक माना जाता है। इस कार्यक्रम में युवाओं की टीमें मिलकर ऊंचाई पर बंधी मटकी को तोड़ने का प्रयास करती हैं, जो उत्साह और आनंद का केंद्र होता है।
जन्माष्टमी का आध्यात्मिक महत्व
यह पर्व भगवान कृष्ण के उपदेश कर्म, भक्ति और ज्ञानको अपनाने की प्रेरणा देता है। आधी रात को की जाने वाली पूजा विशेष महत्व रखती है, क्योंकि इसे आध्यात्मिक ऊर्जा का सर्वोत्तम समय माना जाता है। इस प्रकार, जन्माष्टमी केवल एक धार्मिक पर्व नहीं, बल्कि भगवान कृष्ण के जन्म, उनके जीवन आदर्शों और उनके अमर संदेशों का उत्सव है, जो भक्ति, प्रेम और सदाचार का मार्ग दिखाता है।
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