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बिहार में बेलगाम अपराध: पौधा उखाड़ने के विवाद में किसान की पीट-पीटकर हत्या

बिहार में अपराधियों के हौसले लगातार बुलंद होते जा रहे हैं। हत्या जैसे संगीन अपराध अब यहां आम होते जा रहे हैं।

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बिहार में अपराधियों के हौसले लगातार बुलंद होते जा रहे हैं। हत्या जैसे संगीन अपराध अब यहां आम होते जा रहे हैं। न कानून का डर बचा है, न ही पुलिस का खौफ—हर तरफ अपराधियों का तांडव दिखाई देता है। ताज़ा मामला रोहतास जिले से सामने आया है, जहां एक मामूली विवाद ने खौफनाक रूप ले लिया। अमझोर थाना क्षेत्र के जागोडीह गांव में गुरुवार को पौधा उखाड़ने के विवाद में एक किसान की पीट-पीटकर हत्या कर दी गई।

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क्या है पूरा मामला?

प्राप्त जानकारी के अनुसार, मृतक किसान की पहचान विरेंद्र सिंह के रूप में हुई है। प्रारंभिक जांच में सामने आया है कि विवाद सरकारी भूमि पर करेला और कटहल का पौधा लगाने को लेकर हुआ था। गुरुवार को कुछ लोगों ने उनके लगाए गए पौधे उखाड़ दिए, जिसके बाद दोनों पक्षों के बीच कहासुनी शुरू हो गई। देखते ही देखते विवाद इतना बढ़ गया कि आरोपी आलोक कुमार और अर्जुन सिंह मेहता ने किसान विरेंद्र सिंह पर लाठी-डंडों से हमला कर दिया। गंभीर रूप से घायल किसान को इलाज के लिए अस्पताल ले जाया गया, जहां इलाज के दौरान उनकी मौत हो गई। एसपी रौशन कुमार ने प्रेस वार्ता में बताया कि पुलिस ने त्वरित कार्रवाई करते हुए महज दो घंटे में दोनों आरोपियों को गिरफ्तार कर लिया है। पूछताछ में आरोपियों ने अपना अपराध स्वीकार कर लिया है।

17 दिनों में 51 हत्याएं, राजधानी भी अछूती नहीं

यह घटना राज्य में बढ़ते अपराध की भयावह तस्वीर को उजागर करती है। बीते 17 दिनों में बिहार में 51 हत्याएं हो चुकी हैं। राजधानी पटना से लेकर छोटे शहरों और गांवों तक अपराधी बेखौफ होकर वारदातों को अंजाम दे रहे हैं। हाल ही में पटना के चर्चित खेमका हत्याकांड के बाद, पारस हॉस्पिटल के अंदर घुसकर गैंगस्टर चंदन मिश्रा की गोलियों से भूनकर हत्या कर दी गई थी। इन घटनाओं ने राज्य की कानून व्यवस्था पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं।

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जंगलराज की सियासत अब सत्ता पर पलटवार

बिहार में लॉ एंड ऑर्डर का मुद्दा हमेशा से राजनीतिक बहस का केंद्र रहा है। एक दौर में नीतीश कुमार और भाजपा ने लालू–राबड़ी शासनकाल को ‘जंगलराज’ कहकर जनता का भरोसा जीता था। लेकिन अब वही सवाल राज्य सरकार के वर्तमान प्रदर्शन पर उठने लगे हैं। जनता बार-बार दो दशक पुरानी स्थितियों की यादों से खुद को जोड़ना नहीं चाहती। राज्य सरकार अपने बचाव में पुरानी बातें नहीं दोहरा सकती, क्योंकि जनता ने उसे बदलाव के वादे पर चुना है।

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