नेपाल की राजधानी काठमांडू और आसपास के इलाकों ने बीते हफ्ते जिस हिंसा का सामना किया, उसने पूरे देश को झकझोर दिया। प्रदर्शनों के दौरान 50 से अधिक लोगों की जान गई और राजधानी घाटी में 30 से ज्यादा पुलिस चौकियां और थाने आग के हवाले कर दिए गए। प्रदर्शन इतने उग्र थे कि सड़कों पर अराजकता फैल गई थी। हालात को काबू में लाने के लिए पुलिस को कई बार कर्फ्यू लगाना पड़ा। हालांकि, सुशीला कार्की के अंतरिम प्रधानमंत्री बनने के बाद धीरे-धीरे शांति बहाल हो रही है और जनता राहत की सांस ले रही है।
युवाओं और स्वयंसेवकों ने की पहल
हिंसा की वजह से जली हुई इमारतों और मलबे से पटी सड़कों को साफ करने की जिम्मेदारी अब स्थानीय स्वयंसेवकों और युवाओं ने उठाई है। वे काठमांडू की गलियों से मलबा हटाकर हालात सामान्य करने की कोशिश कर रहे हैं। कई जगहों पर अस्थायी कंट्रोल रूम बनाए गए हैं, ताकि मदद और सुरक्षा से जुड़े कॉल्स का जवाब दिया जा सके। यह सामूहिक प्रयास इस बात का संकेत है कि संकट के समय नेपाल का समाज एकजुट होकर स्थिति को सुधारने के लिए काम कर रहा है।
धार्मिक स्थलों के खुलने से दिखी सकारात्मकता
हिंसा और अस्थिरता के बीच सबसे बड़ा संदेश शांति का तब मिला जब काठमांडू स्थित प्रसिद्ध पशुपतिनाथ मंदिर को श्रद्धालुओं के लिए फिर से खोल दिया गया। इसे आम लोगों में सकारात्मक माहौल बनाने की दिशा में अहम कदम माना जा रहा है। इसके साथ ही, राजनीतिक हलकों में भी हलचल है। उम्मीद जताई जा रही है कि अंतरिम प्रधानमंत्री सुशीला कार्की जल्द ही मंत्रिमंडल का विस्तार करेंगी। लोग अब इस ओर भी उत्सुक हैं कि नई सरकार किस तरह से स्थिरता की ओर कदम बढ़ाएगी और देश को संकट से बाहर निकालेगी।
संसद भंग, 2026 में होंगे चुनाव
नेपाल की राजनीति में बड़ा मोड़ तब आया जब अंतरिम सरकार की सिफारिश पर राष्ट्रपति रामचंद्र पौडेल ने संसद को भंग कर दिया। इसके साथ ही, उन्होंने घोषणा की कि 5 मार्च 2026 को नए आम चुनाव कराए जाएंगे। हालांकि इस फैसले का नेपाली कांग्रेस, कम्युनिस्ट पार्टियों और अन्य प्रमुख दलों ने विरोध किया है। उनका कहना है कि संसद भंग करना लोकतंत्र के लिए खतरा है। इसके बावजूद, फिलहाल जनता की नजरें आगामी चुनावों पर टिकी हैं, जिनसे देश की राजनीतिक दिशा तय होगी।
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