स्मार्टफोन आज हर किसी की जरूरत बन गया है। सुबह उठते ही फोन चेक करना और रात को सोने से पहले तक स्क्रॉल करना आम बात हो गई है। लेकिन यह आदत हमारी नींद को बुरी तरह प्रभावित कर रही है। स्मार्टफोन से निकलने वाली नीली रोशनी दिमाग पर गहरा असर डालती है। यह रोशनी मेलाटोनिन हार्मोन को कम करती है, जो नींद लाने में मदद करता है। जब मेलाटोनिन बनना कम हो जाता है, तो रात में नींद आने में दिक्कत होती है और स्लीप साइकिल बिगड़ जाता है।
नीली रोशनी का असर
स्मार्टफोन, टैबलेट और लैपटॉप जैसी स्क्रीन से निकलने वाली नीली रोशनी हमारी आंखों और दिमाग को भ्रमित करती है। यह रोशनी दिमाग को दिन का समय समझा देती है, जिससे नींद का समय टलता चला जाता है। रात को देर तक फोन चलाने वाले लोग अक्सर अनिद्रा की शिकायत करते हैं। इससे न सिर्फ नींद की कमी होती है, बल्कि दिनभर थकान, चिड़चिड़ापन और फोकस की कमी जैसी समस्याएं भी बढ़ती हैं।
स्लीप साइकिल का बिगड़ना
रात को बिस्तर पर लेटकर फोन चलाने की आदत सबसे ज्यादा नुकसान पहुंचाती है। कई बार पांच मिनट के लिए वीडियो देखने या चैट करने का प्लान घंटों में बदल जाता है। इससे सोने का समय टल जाता है और नींद पूरी नहीं हो पाती। गलत समय पर सोने या आधी-अधूरी नींद लेने से स्लीप साइकिल बिगड़ जाता है। लंबे समय तक ऐसा होने पर नींद की गंभीर समस्याएं शुरू हो सकती हैं, जैसे अनिद्रा या बार-बार नींद टूटना।
नींद की कमी से होने वाले नुकसान
नींद की कमी सिर्फ थकान तक सीमित नहीं है, बल्कि यह शरीर और दिमाग दोनों को नुकसान पहुंचाती है। कम नींद की वजह से ध्यान लगाने में दिक्कत, मूड खराब होना और काम करने की क्षमता में कमी आती है। लंबे समय तक नींद पूरी न होने से हाई ब्लड प्रेशर, डायबिटीज और मोटापे का खतरा बढ़ जाता है। देर रात फोन चलाने की वजह से जंक फूड खाने की आदत भी बढ़ती है, जो वजन बढ़ने का कारण बनता है। बच्चों में नींद की कमी से मेमोरी और सीखने की क्षमता पर भी असर पड़ता है।
सोशल मीडिया और FOMO का प्रभाव
सोशल मीडिया की वजह से कई लोग FOMO यानी ‘फियर ऑफ मिसिंग आउट’ का शिकार हो जाते हैं। उन्हें लगता है कि अगर वे फोन न चेक करेंगे, तो कुछ जरूरी चीज मिस हो जाएगी। यह डर स्मार्टफोन की लत को और बढ़ाता है। रात को देर तक सोशल मीडिया स्क्रॉल करने से नींद का समय कम होता जाता है, जिसका सीधा असर मानसिक और शारीरिक सेहत पर पड़ता है। लंबे समय तक ऐसा होने पर तनाव और डिप्रेशन जैसी समस्याएं भी बढ़ सकती हैं।
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