8 सितंबर 2025 को विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) ने अकेलेपन पर एक वैश्विक रिपोर्ट जारी की, जिसमें बताया गया कि दुनिया में हर छठा व्यक्ति अकेलेपन से जूझ रहा है। यह न केवल मानसिक स्वास्थ्य को नुकसान पहुंचाता है, बल्कि शारीरिक बीमारियों को भी बढ़ावा देता है। खासकर 13 से 29 साल के युवाओं में अकेलापन ज्यादा देखा गया है। WHO के महानिदेशक डॉ. टेड्रोस एडनॉम घेब्रेयेसस ने कहा कि डिजिटल युग में लोग एक-दूसरे से जुड़ने के बजाय और अलग-थलग हो रहे हैं।
युवाओं में अकेलेपन का खतरा
रिपोर्ट के मुताबिक, 2014 से 2023 के बीच हुए सर्वे में 17 से 21% युवाओं ने अकेलापन महसूस करने की बात कही। निम्न और मध्यम आय वाले देशों में यह दर 24% तक है, जो उच्च आय वाले देशों (11%) से दोगुनी है। गाजियाबाद के जिला अस्पताल के मानसिक रोग विशेषज्ञ डॉ. ए के विश्वकर्मा ने बताया कि डिजिटल दुनिया में लोग स्क्रीन से जुड़े हैं, लेकिन असल में अकेलेपन का शिकार हो रहे हैं।
अकेलेपन से होने वाली बीमारियां
अकेलापन मानसिक और शारीरिक दोनों तरह की समस्याएं पैदा करता है। यह डिप्रेशन और चिंता को बढ़ाता है, साथ ही हृदय रोग, स्ट्रोक, मधुमेह और स्मृति ह्रास का जोखिम भी बढ़ जाता है। WHO की रिपोर्ट कहती है कि अकेले रहने वाले लोगों में अवसाद की संभावना दोगुनी होती है। कुछ मामलों में यह आत्म-क्षति या आत्महत्या के विचारों को भी जन्म दे सकता है। लंबे समय तक अकेलापन उच्च रक्तचाप और नींद की समस्याओं को भी बढ़ाता है।
सामाजिक जुड़ाव की जरूरत
विशेषज्ञों का कहना है कि अकेलेपन से बचने के लिए सामाजिक रिश्तों को मजबूत करना जरूरी है। पार्क, स्कूल, लाइब्रेरी और सामुदायिक क्लब जैसे स्थान लोगों को जोड़ने में मदद करते हैं। दोस्तों से बात करना, पड़ोसियों से मिलना या स्थानीय समूहों में शामिल होना छोटे लेकिन प्रभावी कदम हैं। अगर अकेलापन गंभीर हो, तो मानसिक स्वास्थ्य विशेषज्ञ से मदद लेना जरूरी है।
डिजिटल युग में चुनौती
डिजिटल दुनिया ने लोगों को जोड़ने के नए तरीके दिए हैं, लेकिन यह कई बार रिश्तों को कमजोर भी कर रही है। लोग सोशल मीडिया पर घंटों बिताते हैं, फिर भी अकेलापन महसूस करते हैं। आमने-सामने की बातचीत और सामुदायिक गतिविधियां इस कमी को पूरा कर सकती हैं।
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