लद्दाख में स्थित सियाचिन ग्लेशियर को दुनिया का सबसे ऊंचा युद्धक्षेत्र कहा जाता है। यहां की कठोर जलवायु और दुर्गम इलाके में हर पल खतरा बना रहता है। रविवार को इसी इलाके में 12,000 फीट की ऊंचाई पर एक आधार शिविर पर अचानक हिमस्खलन हुआ, जिसकी चपेट में आकर दो अग्निवीर सहित तीन सैनिक शहीद हो गए। सेना ने तुरंत राहत और बचाव अभियान शुरू किया और फंसे हुए जवानों के शव निकाल लिए। अभी भी इलाके में विशेष टीमें तैनात हैं, ताकि हालात पर नियंत्रण रखा जा सके। यह हादसा साबित करता है कि सियाचिन में तैनात सैनिक केवल दुश्मनों से ही नहीं, बल्कि प्रकृति की कठोर चुनौतियों से भी जूझते रहते हैं।
बचाव अभियान और सुरक्षा का इंतज़ाम
सुचना मिलने के तुरंत बाद भारतीय सेना ने बचाव कार्य तेज़ कर दिया। मुश्किल मौसम और बर्फीले तूफ़ान जैसी हालातों के बीच राहत टीमों ने ग्लेशियर पर अभियान चलाया। इस क्षेत्र में तापमान कई बार माइनस 40 डिग्री तक गिर जाता है, जिससे सैनिकों की सुरक्षा और भी चुनौतीपूर्ण हो जाती है। सेना लगातार सुरक्षा प्रोटोकॉल की समीक्षा कर रही है, ताकि भविष्य में ऐसे हादसों के दौरान नुकसान को कम किया जा सके। आधुनिक उपकरणों और विशेष प्रशिक्षण प्राप्त टीमों की मदद से राहत कार्य को तेज़ किया गया है, लेकिन यहां हर एक अभियान खुद में जोखिम भरा होता है।
हिमस्खलनों का दर्दनाक इतिहास
आपको बता दें, सियाचिन में हिमस्खलनों का इतिहास बेहद दर्दनाक रहा है। साल 2021 में सब-सेक्टर हनीफ में हुए हिमस्खलन में दो सैनिकों की मौत हुई थी। 2019 में 18,000 फीट की ऊंचाई पर गश्त कर रहे चार जवान और दो पोर्टर बर्फ के सैलाब में समा गए। वहीं, 2016 का हादसा आज भी देश की यादों में ताज़ा है, जब 19,600 फीट पर दस जवान दब गए थे। इनमें लांस नायक हनमनथप्पा कोप्पड़ मलबे से जिंदा निकाले गए थे, लेकिन कई अंग फेल होने के कारण कुछ दिनों बाद उनकी मृत्यु हो गयी। यह वास्तविक घटनाएं सबूत हैं कि सियाचिन में हर दम और हर क्षण जीवन और मृत्यु के बीच जंग जैसी होती है।
शहीदों का बलिदान और राष्ट्र की श्रद्धांजलि
इन हादसों के बावजूद भारतीय सेना के जवान लगातार देश की सीमाओं की रक्षा करते हैं। उनकी बहादुरी और समर्पण ही है कि देशवासी चैन की नींद सो पाते हैं। सियाचिन जैसे क्षेत्र में तैनात रहना किसी साहसिक मिशन से कम नहीं है। तीनों जवानों की शहादत ने पूरे देश को गमगीन कर दिया है, लेकिन साथ ही यह हमें उनके अदम्य साहस की याद भी दिलाती है। राष्ट्र उनके बलिदान को सलाम करता है और उनके परिवारों के साथ खड़ा है। यह घटना फिर याद दिलाती है कि सैनिकों की ज़िंदगी केवल ड्यूटी नहीं, बल्कि एक ऐसी तपस्या है जो सीमाओं की सुरक्षा के लिए समर्पित होती है।
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