महाराष्ट्र में मराठा आरक्षण का मुद्दा एक बार फिर गरमा गया है,। मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने जिस तरह से हैदराबाद गजट के आधार पर मराठाओं को कुनबी प्रमाणपत्र देकर OBC कोटे में लाने का रास्ता खोला, उससे न केवल विपक्ष, बल्कि अब वे समुदाय भी नाराज हो गए हैं जो बीजेपी और फणनवीस के स्थायी वोटर हैं। इस बार की लड़ाई ने समीकरणों को और भी मुश्किल बना दिया है। यह संघर्ष अब केवल मराठा बनाम ओबीसी (OBC) तक सीमित नहीं है, बल्कि इसमें बंजारा और आदिवासी समुदायों के शामिल होने से स्थिति और भी उलझ गई है।
BJP के लिए यह एक बड़ी दुविधा बन गई है। अगर वे मराठा समुदाय को पूरी तरह संतुष्ट करते हैं, तो ओबीसी, बंजारा और आदिवासी नाराज हो जाएंगे। और अगर वे ओबीसी की बात मानते हैं, तो मराठा आंदोलन और भी उग्र हो सकता है।
ओबीसी, बंजारा और आदिवासी समाज नाराज क्यों?
मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने हैदराबाद गजट के आधार पर मराठा समुदाय को कुनबी प्रमाणपत्र देकर ओबीसी कोटे में शामिल करने का रास्ता खोला है। इस कदम से न केवल विपक्ष, बल्कि वे समुदाय भी नाराज हो गए हैं जिन्हें बीजेपी का स्थायी समर्थक माना जाता रहा है। इनमें ओबीसी, बंजारा और आदिवासी संगठन शामिल हैं।
Government Resolution वापस लेने तक विरोध जारी
जालना जिले में ओबीसी, आदिवासी और बंजारा संगठनों ने ऐलान किया है कि जब तक सरकार मराठा आरक्षण पर जारी जीआर यानी Government Resolution वापस नहीं लेती, तब तक उनका विरोध जारी रहेगा। उनका कहना है कि मराठाओं को कुणबी प्रमाणपत्र देने का मतलब है कि मौजूदा 374 जातियों के आरक्षण पर सीधा असर पड़ेगा।
बंजारा संगठन गोर सेना के अध्यक्ष संदेश चव्हाण ने कहा कि, “हम हैदराबाद राज्य में अनुसूचित जनजाति के रूप में दर्ज थे, हमें वही हक वापस चाहिए। आज हमारे नौजवान भूख हड़ताल पर हैं, और यहां तक कि आत्महत्या तक करने लगे हैं।”
उलझी दलित-ओबीसी-आदिवासी राजनीति
वहीं, कुछ आदिवासी संगठनों ने बंजारा समुदाय की मांग का विरोध करते हुए कहा कि उन्हें पहले से ही विमुक्त जाति और भटक्या जमात (VJNT) के तहत 3% आरक्षण मिल रहा है। इस खींचतान ने दलित-ओबीसी-आदिवासी राजनीति को और भी उलझा दिया है।
महाराष्ट्र में ओबीसी वोट बैंक का महत्व
महाराष्ट्र की राजनीति में ओबीसी वोट बैंक निर्णायक भूमिका निभाता है। राज्य की कुल आबादी में ओबीसी की हिस्सेदारी लगभग 35% से अधिक मानी जाती है। विधानसभा की 288 सीटों में से लगभग 80-90 सीटें ऐसी हैं जहां ओबीसी मतदाताओं का सीधा प्रभाव पड़ता है।
ओबीसी की नाराजगी बिगाड़ सकती है समीकरण
2014 और 2019 दोनों चुनावों में बीजेपी-शिवसेना गठबंधन को सत्ता में लाने में इस वोट बैंक का बड़ा योगदान रहा है। अगर बीजेपी का यह पारंपरिक वोट बैंक आरक्षण को लेकर नाराज हो जाता है, तो राज्य के भविष्य के राजनीतिक समीकरण बदल सकते हैं।
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