भारत में दवाओं का खर्च कई परिवारों की कमर तोड़ देता था। लेकिन प्रधानमंत्री जन औषधि योजना ने इसे बदल दिया। 2008 में शुरू हुई इस योजना ने 2014 से रफ्तार पकड़ी। अब तक 12,000 से ज्यादा केंद्र खुल चुके। इसका मकसद जेनेरिक दवाएं सस्ते दामों में देना है। ब्रांडेड दवाएं जहां 100 रुपये की पड़ती हैं, वही दवा जन औषधि केंद्र पर 20-30 रुपये में मिलती। ये दवाएं WHO-GMP मानकों पर खरी हैं। गुणवत्ता में कोई कमी नहीं।
योजना का विस्तार
2013 में सिर्फ 80-100 केंद्र थे। 2025 तक यह संख्या 12,000 पार कर गई। सरकार का लक्ष्य मार्च 2027 तक 25,000 केंद्र खोलना। गांव-कस्बों तक पहुंच बढ़ रही। दिल्ली के डॉ. अजीत कुमार कहते हैं कि जेनेरिक दवाएं ब्रांडेड जितनी ही असरदार। सिर्फ पैकिंग और ब्रांडिंग का फर्क है। डायबिटीज, ब्लड प्रेशर और हृदय रोग की दवाएं अब हर किसी की जेब में। सर्जिकल आइटम जैसे ग्लव्स, आई ड्रॉप्स भी सस्ते मिलते।
किसे मिला फायदा
गरीब और मध्यम वर्ग को सबसे ज्यादा राहत मिली। बुजुर्ग, जो रोज डायबिटीज या बीपी की दवाएं लेते, अब कम खर्च में इलाज कर रहे। ग्रामीण परिवारों को महंगे ब्रांडेड दवाओं से छुटकारा मिला। महिलाओं और बच्चों के लिए आयरन, कैल्शियम, विटामिन की गोलियां सस्ती हैं। मध्यम वर्ग के रामप्रसाद शर्मा, दिल्ली, बताते हैं कि उनकी मां की बीपी की दवा 150 रुपये की थी, अब 30 रुपये में मिलती। यह योजना लाखों परिवारों की जिंदगी आसान कर रही।
दवाओं की कीमत
Indian Brand Equity Foundation के मुताबिक, जन औषधि दवाएं टॉप ब्रांडेड दवाओं की औसत कीमत से 50% तक सस्ती। कुछ दवाएं 80-90% कम दाम में मिलती। उदाहरण के लिए, डायबिटीज की दवा जो बाजार में 120 रुपये की है, वह केंद्र पर 25 रुपये में उपलब्ध। सर्जिकल उपकरण और ब्लड प्रेशर मशीन भी कम दाम में। यह योजना स्वास्थ्य सेवाओं को सुलभ बना रही।
भविष्य की योजना
सरकार 2027 तक हर जिले में केंद्र खोलने की तैयारी में। ग्रामीण इलाकों पर खास ध्यान। मोबाइल ऐप्स से नजदीकी केंद्र ढूंढे जा सकते। लोग अब जेनेरिक दवाओं पर भरोसा करने लगे। यह योजना गरीबों की सेहत का ख्याल रख रही। केंद्रों की संख्या बढ़ने से और लोग फायदा उठाएंगे।
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