सुप्रीम कोर्ट की दो सदस्यों वाली बेंच (चीफ जस्टिस बी.आर. गवई और जस्टिस ए.जी. मसीह) ने वक्फ संशोधन अधिनियम, 2025 की पूरी संवैधानिकता पर फैसला नहीं दिया है, लेकिन अधिनियम की कुछ धाराओं पर रोक लगा दी है। अदालत ने यह कहा कि संसद द्वारा पारित कानून की संवैधानिकता को नकारना नहीं चाहिए, लेकिन कुछ प्रावधानों में तत्काल सुरक्षा की जरूरत है।
शिया मौलाना कल्बे जव्वाद का बयान
दिन की शुरुआत में मुस्लिम पक्षकारों जैसे कि जमीयत उलमा-ए-हिंद, मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड, शिया मौलाना कल्बे जव्वाद ने इस फैसले का स्वागत किया क्योंकि वे इसे मुस्लिम संपत्तियों पर सरकारी हस्तक्षेप को रोकने वाला कदम मान रहे थे। लेकिन जैसे ही पूरा 128 पेज का जजमेंट सार्वजनिक हुआ और निर्णय के हर हिस्से का विश्लेषण किया गया, यह स्पष्ट हुआ कि कुछ महत्वपूर्ण चिंताएं अभी भी बनी हुई हैं।
मुख्य विवादित बिंदु
एएसआई सर्वेक्षण: मुस्लिम समुदाय का कहना है कि अधिनियम के तहत वक्फ संपत्तियों को गैर-वक्फ घोषित करने का प्रावधान है, जो अतिक्रमण के मामलों में दिक्कत खड़ी कर सकता है। कोर्ट ने सर्वेक्षण पर पूरी तरह से रोक नहीं लगाई है।
कलेक्टर की शक्तियां: कलेक्टर को सर्वेक्षण की अनुमति है, लेकिन कुछ सीमाएं लगाई गई हैं। शुरुआती उम्मीदों के विपरीत, पूरी तरह की पाबंदी नहीं।
LImitation Act का अनुप्रयोग: अधिनियम में कहा गया था कि वक्फ सम्पत्तियों पर Limitation Act लागू नहीं होगी, जिससे आसपास के कब्जों पर समय-सीमा न होने की स्थिति बन जाती है। कुछ फैसलों में इस पहलू को भी चुनौती दी गई है।
राजनीतिक और सामाजिक प्रतिक्रिया
AIMIM के अध्यक्ष असदुद्दीन ओवैसी ने कहा कि ये फैसले वक्फ अधिनियम को पूरी तरह से सुरक्षित नहीं कर पाए हैं। उनका मानना है कि कुछ प्रावधान ऐसे हैं जो अतिक्रमणकर्ताओं को लाभ दे सकते हैं और वक्फ की ज़मीनों से जुड़े विकास कार्यों को प्रभावित कर सकते हैं। उन्होंने विशेष रूप से यह सवाल उठाया कि गैर-मुस्लिम सदस्यों की नियुक्ति, या पांच वर्ष तक “मुस्लिम होना चाहिए” जैसा प्रावधान संविधान में धार्मिक स्वतंत्रता से जुड़े अधिकारों को कैसे प्रभावित करेगा।
वक्फ संस्थाएं और मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड अब यह देख रहे हैं कि अंतिम निर्णय कब आएगा और उस निर्णय में इन सभी चिंताओं को किस तरह संबोधित किया जाएगा। इस बीच, समुदाय में नीति निर्माता, न्यायपालिका, और नागरिक समाज से यह अपेक्षा बनी हुई है कि सरकार और अदालतें पारदर्शी एवं संवेदनशील दृष्टिकोण अपनाएँ।
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