हर साल 14 सितंबर को हिंदी दिवस मनाया जाता है, जो हमें हमारी भाषा की गौरवशाली विरासत की याद दिलाता है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि हिंदी का जन्म कैसे हुआ? यह कहानी 5000 साल पुरानी है, जो सिंधु नदी के किनारे बसी एक महान सभ्यता से शुरू होती है। सिंधु घाटी सभ्यता, जो दुनिया की सबसे प्राचीन शहरी सभ्यताओं में से एक है, ने न सिर्फ भारत को एक पहचान दी, बल्कि हमारी भाषा हिंदी को भी जन्म दिया।
सिंधु नदी, जो आज के पंजाब और सिंध क्षेत्र में बहती है, हजारों साल पहले व्यापारियों और यात्रियों के लिए आकर्षण का केंद्र थी। इस नदी के किनारे बसे लोग अपनी समृद्ध संस्कृति और मधुर भाषा के लिए जाने जाते थे। उस समय यहां के लोग एक ऐसी भाषा बोलते थे, जो प्राकृत और संस्कृत का मिश्रण थी। यह भाषा धीरे-धीरे विकसित होकर आज की हिंदी की नींव बनी।
फारसी यात्रियों ने दी नई पहचान
कहानी तब रोचक हुई, जब फारसी यात्री भारत आए। उनकी भाषा में ‘स’ का उच्चारण ‘ह’ हो जाता था। इस वजह से उन्होंने सिंधु नदी को ‘हिंदू’ कहा। इस नदी के नाम पर ही इस पूरे क्षेत्र को ‘हिंदुस्तान’ यानी ‘हिंदू लोगों की भूमि’ का नाम मिला। इन यात्रियों ने देखा कि यहां के लोग एक सरल और मधुर भाषा बोलते हैं। उन्होंने इसे ‘हिंदी’ नाम दिया, जिसका मतलब था हिंदुस्तान की भाषा। इस तरह, एक नदी ने न सिर्फ देश को, बल्कि उसकी भाषा को भी पहचान दी।
समय के साथ यह भाषा और समृद्ध हुई। ग्रीक, पारसी और अन्य विदेशी यात्रियों ने भी इस क्षेत्र को हिंदुस्तान के नाम से जाना। उनकी किताबों में इस इलाके और इसकी भाषा का जिक्र मिलता है। मध्यकाल में जब मुगल भारत आए, तो उन्होंने भी इस भाषा को अपनाया और इसे ‘हिंदवी’ कहा। बाद में, यह हिंदी के रूप में पूरे देश में फैली।
हिंदी की ताकत और महत्व
आज हिंदी भारत की सबसे ज्यादा बोली जाने वाली भाषा है। यह न सिर्फ हमारी संस्कृति का हिस्सा है, बल्कि हमारी पहचान भी है। हिंदी ने साहित्य, सिनेमा और रोजमर्रा की जिंदगी में अपनी खास जगह बनाई है। हिंदी दिवस हमें याद दिलाता है कि हमारी भाषा की जड़ें कितनी गहरी हैं। यह सिर्फ एक भाषा नहीं, बल्कि हमारी सभ्यता और इतिहास का प्रतीक है।
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