हिमाचल प्रदेश में अब तक बादल फटने की 28, अचानक बाढ़ 51 तथा भूस्खलन की 45 घटनाएं दर्ज की गई हैं। इनने मंडी, कुल्लू व ऊना सबसे प्रभावित रहा है। इस साल का मानसून काफी तबाही लेकर आया है। सुप्रीम कोर्ट की चेतावनी है कि हिमाचल प्रदेश नक्शे से गायब हो सकता है।कोर्ट ने राज्य में बढ़ती प्राकृतिक आपदाओं पर गंभीर सवाल उठाए हैं। अनियोजित( Unplanned)विकास, जंगलों की कटाई, और जलवायु परिवर्तन ने मिलकर हिमाचल को संकट में डाल दिया है। इस मानसून सीजन में अब तक 184 लोगों की जान जा चुकी है, और 1,714 करोड़ रुपये का आर्थिक नुकसान हुआ है। चूंकि मानसून के दो महीने अभी बाकी हैं, विशेषज्ञों का मानना है कि यह सीजन नई आपदाओं के रिकॉर्ड बना सकता है।
इन आपदाओं ने मंडी, कुल्लू, और ऊना जिलों को सबसे अधिक प्रभावित किया है। मंडी के जंजैहली क्षेत्र में बादल फटने से 1,000 से अधिक घर क्षतिग्रस्त हुए, और रोड पंचायत में 25 परिवार बेघर हो गए। कुल्लू में मलाणा पावर प्रोजेक्ट के बांध को भारी नुकसान पहुंचा, जबकि मंडी शहर के जेल रोड क्षेत्र में तीन लोगों की मौत हुई। पिछले पांच सालों के आंकड़े बताते हैं कि 2023 में 12,000 करोड़ रुपये का नुकसान और 441 मौतें सबसे भयावह थीं। इस साल का नुकसान 2021 (1,151 करोड़ रुपये, 476 मौतें) के बाद दूसरा सबसे बड़ा है।
प्रभावित क्षेत्र
मंडी: जंजैहली और थुनाग क्षेत्रों में बादल फटने से सैकड़ों घर, खेत, और पॉलीहाउस नष्ट हो गए। मंडी में 947 मिमी बारिश दर्ज की गई, जो सामान्य (620 मिमी) से 53% अधिक है।
कुल्लू: मलाणा और सैंज घाटी में बाढ़ और भूस्खलन ने सड़कों और बुनियादी ढांचे को भारी नुकसान पहुंचाया।
ऊना: स्वां नदी में अचानक जलस्तर बढ़ने से पांच प्रवासी मजदूर फंस गए, जिन्हें बाद में बचा लिया गया।
शिमला: कालका-शिमला रेलमार्ग पर भूस्खलन से ट्रेन सेवाएं बाधित हुईं। इसके साथ ही किसानों को भी भारी नुकसान हुआ है।
मौसम विज्ञान केंद्र, शिमला के अनुसार, इस मानसून में हिमाचल में कुल 439 मिमी बारिश हुई, जो सामान्य (396 मिमी) से 11% अधिक है। लेकिन यह बारिश असमान रूप से वितरित हुई है।
प्रभावित क्षेत्र में बारिश
मंडी: 947 मिमी (53% अधिक)
शिमला: 571 मिमी (62% अधिक)
कुल्लू: 230 मिमी (43% अधिक)
ऊना: 369 मिमी (45% अधिक)
जुलाई में मंडी में 574 मिमी (49% अधिक) और शिमला में 357 मिमी (70% अधिक) बारिश दर्ज की गई। यह असामान्य बारिश छोटे समय में अत्यधिक वर्षा (टॉरेंशियल रेन) के रूप में हो रही है, जो बादल फटने और भूस्खलन को बढ़ावा देती है।
विशेषज्ञों का मानना है कि हिमाचल में बढ़ती आपदाओं के पीछे जलवायु परिवर्तन और मानवीय लापरवाही प्रमुख कारण हैं। जम्मू सेंट्रल यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर सुनील धर के अनुसार, ग्लोबल वार्मिंग के कारण वातावरण में नमी की मात्रा बढ़ी है, और हिमालयी क्षेत्रों में तापमान वृद्धि वैश्विक औसत से अधिक है। इससे गर्म और नम हवा तेजी से ऊपर उठती है, जो ठंडी हवा से मिलकर भारी बारिश और बादल फटने की घटनाओं को जन्म देती है।
हिमाचल में ग्लेशियर तेजी से पिघल रहे हैं, जिससे नदियों में जलस्तर बढ़ता है और बाढ़ का खतरा बढ़ जाता है।सड़कों और हाइड्रोपावर प्रोजेक्ट्स के लिए पहाड़ों की लंबवत कटाई ने मिट्टी की स्थिरता को कमजोर किया है।1980 से 2014 तक किन्नौर में 90% जंगल गैर-वन गतिविधियों के लिए काटे गए, जिससे भूस्खलन का खतरा बढ़ा। 174 हाइड्रोपावर प्रोजेक्ट्स ने नदियों के प्राकृतिक प्रवाह को बाधित किया, जिससे बाढ़ की तीव्रता बढ़ी।
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