महाराष्ट्र में गणेशोत्सव की रौनक के बीच घर-घर ज्येष्ठ गौरी का आगमन भी हो चुका है। भाद्रपद माह के शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि पर मनाया जाने वाला ये पर्व महाराष्ट्र और कर्नाटक के प्रमुख उत्सवों में से एक है। इसे खासतौर पर विवाहित महिलाएं अखंड सौभाग्य, समृद्धि और वैवाहिक सुख की कामना के लिए मनाती हैं।
इस बार ज्येष्ठ गौरी पूजन 1 सितंबर 2025 को किया जा रहा है और 2 सितंबर को देवी का विसर्जन होगा। ये परंपरा देवी गौरी के जल में विदाई के साथ अगले वर्ष उनके पुनः आगमन का आमंत्रण भी मानी जाती है। विसर्जन न सिर्फ एक धार्मिक अनुष्ठान है बल्कि ये जीवन में नवीनीकरण और नई शुरुआत का प्रतीक भी है।
ज्येष्ठ गौरी विसर्जन का महत्व
- देवी पार्वती का स्वरूप: गौरी को शक्ति, सौंदर्य और समृद्धि की देवी माना जाता है।
- अखंड सौभाग्य की कामना: विवाहित महिलाएं व्रत रखकर अपने पति की लंबी उम्र और सुखी दांपत्य जीवन की प्रार्थना करती हैं।
- परिवार और सामाजिक जुड़ाव: सामूहिक पूजा और व्रत से रिश्तों में एकता और पारिवारिक बंधन मजबूत होते हैं।
- समृद्धि का प्रतीक: माना जाता है कि गौरी पूजन से घर में धन-धान्य और उन्नति का आशीर्वाद मिलता है।
- जीवन का नवीनीकरण: विसर्जन इस बात का संदेश देता है कि हर अंत के साथ नई शुरुआत जुड़ी होती है।
पर्व मनाने की परंपरा
ये पर्व तीन दिनों तक मनाया जाता है, जिसमें हर दिन का अपना अलग महत्व है।
- पहला दिन – गौरी आवाहन: देवी गौरी की मूर्ति घर लाकर स्थापित की जाती है। फूलों, आम के पत्तों और रंगोली से घर सजाया जाता है।
- दूसरा दिन – गौरी पूजन: देवी को नए वस्त्र, सिन्दूर और आभूषण पहनाए जाते हैं। महिलाएं व्रत रखती हैं और विशेष भोग अर्पित करती हैं।
- तीसरा दिन – गौरी विसर्जन: शुभ नक्षत्र में देवी की मूर्ति को जल में विसर्जित किया जाता है। ये प्रतीकात्मक रूप से उन्हें कैलाश पर्वत की ओर विदा करना माना जाता है।
महाराष्ट्र और कर्नाटक में ये पर्व न सिर्फ धार्मिक आस्था का हिस्सा है, बल्कि महिलाओं के लिए सौंदर्य, शक्ति और समृद्धि का विशेष उत्सव भी है। गणेशोत्सव की तरह ही ज्येष्ठ गौरी पूजन और विसर्जन घर-घर में उत्साह और श्रद्धा के साथ मनाया जाता है।
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