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ज्येष्ठ गौरी पूजन 2025: आज है सौभाग्य का पर्व, जानें शुभ मुहूर्त और महत्व

1 सितंबर को महाराष्ट्र में माता गौरी की पूजा के साथ सौभाग्य की कामना का पर्व है। आज के दिन विवाहित महिलाएं व्रत रखकर माता गौरी से परिवार की सुख-समृद्धि की कामना करती हैं।

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गणेशोत्सव की धूम के बीच आज महाराष्ट्र में ज्येष्ठ गौरी पूजन की रौनक छाई है। भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि को मनाया जाने वाला ये तीन दिवसीय पर्व मराठी संस्कृति का अभिन्न हिस्सा है। आज माता गौरी की उपासना के साथ महिलाएं अखंड सौभाग्य और परिवार की समृद्धि की कामना करती हैं। आइए, जानते हैं इस पर्व का महत्व और शुभ मुहूर्त।

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ज्येष्ठ गौरी पूजन: एक पवित्र परंपरा

ज्येष्ठ गौरी पूजन गणेश चतुर्थी के दो दिन बाद शुरू होता है, जब माता गौरी का अपने मायके में आगमन माना जाता है। ये पर्व विशेष रूप से महाराष्ट्र और कर्नाटक में धूमधाम से मनाया जाता है। पहले दिन गौरी का आह्वान, दूसरे दिन पूजन और तीसरे दिन विसर्जन की परंपरा है। इस बार 1 सितंबर को गौरी पूजन होगा, जबकि 2 सितंबर को गौरी विसर्जन के साथ ये उत्सव समाप्त होगा। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, माता गौरी तीन दिनों तक घर में विराजमान रहकर सुख-समृद्धि का आशीर्वाद देती हैं।

शुभ मुहूर्त: कब करें पूजा?

पंचांग के अनुसार, ज्येष्ठ गौरी पूजन का शुभ मुहूर्त 1 सितंबर को सुबह 5:39 बजे से शाम 6:17 बजे तक है। इस 12 घंटे 38 मिनट की अवधि में माता गौरी की पूजा की जा सकती है। वहीं, गौरी विसर्जन 2 सितंबर को रात 9:51 बजे से 10:51 बजे तक मूल नक्षत्र में होगा। उसी दिन गणपति बप्पा का सात दिवसीय विसर्जन भी किया जाएगा, जिससे उत्सव की भव्यता और बढ़ जाएगी।

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महाराष्ट्र में क्यों खास है ये पर्व?

महाराष्ट्र में ज्येष्ठ गौरी पूजन को विशेष रूप से विवाहित महिलाएं उत्साह के साथ मनाती हैं। ये पर्व ज्येष्ठ नक्षत्र के दौरान पड़ता है, इसलिए इसे ‘ज्येष्ठ गौरी व्रत’ भी कहा जाता है। इस दौरान महिलाएं व्रत रखकर और माता गौरी की पूजा कर परिवार की सुख-शांति और अखंड सौभाग्य की प्रार्थना करती हैं। ये पर्व न केवल धार्मिक, बल्कि सामाजिक और सांस्कृतिक रूप से भी महत्वपूर्ण है, क्योंकि ये परिवारों को एकजुट करता है और परंपराओं को जीवंत रखता है।

उत्सव की रौनक और परंपराएं

गौरी पूजन के दौरान घरों को सजाया जाता है, और माता गौरी की मूर्ति या प्रतीक को विशेष रूप से स्थापित किया जाता है। महिलाएं पारंपरिक वस्त्र पहनकर पूजा करती हैं और भोग के रूप में मिठाइयां, फल और अन्य प्रसाद चढ़ाती हैं। गौरी विसर्जन के दिन माता को भावभीनी विदाई दी जाती है, जो भावनात्मक और आध्यात्मिक दोनों दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है। ये पर्व गणेशोत्सव के उत्साह को और बढ़ाता है। ज्येष्ठ गौरी पूजन के इस पावन अवसर पर हम सभी को माता गौरी के आशीर्वाद की कामना करते हैं।

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