बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार महिलाओं के विकास के लिए कई योजनाएं संचालित कर रहे हैं। अब यहां की जीविका योजना की सफलता की गूंज सात समंदर पार अफ्रीकी देश केन्या तक पहुंच गई है। बिहार में महिलाओं के आर्थिक सशक्तीकरण और गरीबी उन्मूलन के इस सफल मॉडल को अपने देश में लागू करने की संभावनाएं तलाशने के लिए केन्या से 17 सदस्यीय एक उच्च-स्तरीय प्रतिनिधिमंडल मंगलवार को नालंदा पहुंची।
इस टीम ने यहां जीविका के तहत चल रही सतत जीविकोपार्जन योजना (Sustainable Livelihoods Scheme )और दीदी की रसोई जैसी योजनाओं को बारीकी से समझा। केन्या के ‘विलेज एंटरप्राइज’ संस्था की क्षेत्रीय कार्यक्रम निदेशक लियो ओकेरो ने कहा कि हम यहां सीखने आए हैं और हमारे लिए सबसे बड़ी सीख यह है कि कैसे बिहार सरकार और उसके विभिन्न मंत्रालय गरीबी खत्म करने के लिए एक साथ मिलकर काम कर रहे हैं।
लियो ओकेरो ने कहा आज हमने जिन जीविका दीदियों से मुलाकात की, उनके चेहरों की मुस्कान इस कार्यक्रम की सफलता की कहानी बताने के लिए काफी है। यह सिर्फ महिलाओं का नहीं, बल्कि पूरे परिवार का सशक्तीकरण है और यही सबसे बड़ा बदलाव है।
स्थानीय स्तर पय जीविका के डीपीएम संजय पासवान ने बताया कि प्रतिनिधिमंडल ने रहुई और हरनौत प्रखंड में सतत जीविकोपार्जन योजना से जुड़ी दीदियों से मुलाकात की। उन्होंने बताया,प्रतिनिधिमंडल इस बात से सबसे ज्यादा प्रभावित और उत्साहित थे कि कैसे सरकार ने शराबबंदी के बाद हाशिए पर आए परिवारों को न केवल आजीविका का साधन दिया, बल्कि उन्हें समाज की मुख्यधारा में भी सम्मान के साथ जोड़ा है।
उन्होंने कहा कि यह देखकर वे काफी खुश हुए कि जो लोग पहले शराब बेचने जैसे कामों में थे, वे अब सम्मानजनक काम कर रहे हैं। सदर अस्पताल में ‘दीदी की रसोई’ का संचालन कर रहीं जीविका दीदी ने प्रतिनिधिमंडल को बताया कि जीविका में आने के बाद हमें प्रशिक्षण मिला और आज हम यहां अस्पताल में मरीजों को भोजन कराकर उनकी सेवा कर रहे हैं और आगे बढ़ रहे हैं।
केन्या के प्रतिनिधि मंडल का यह दौरा जीविका और ब्रैक इंटरनेशनल के अनुबंध के तहत ‘इमर्शन लर्निंग एंड एक्सचेंज’ कार्यक्रम के हिस्से के रूप में आयोजित किया गया है।
जीविका के जरिए बिहार के सवा करोड़ परिवारों को विभिन्न माध्यम से रोजगार दिया जा रहा है। यह उपलब्धि पिछले डेढ़ दशक में प्राप्त हुई है। ग्रामीण स्तर पर लोगों को स्वरोजगार देने, विशेषकर महिलाओं को स्वावलंबी बनाने के उद्देश्य से 2006 में पांच प्रखंडों से इस व्यवस्था की शुरुआत हुई थी। वर्तमान में 1.27 करोड़ परिवारों तक जीविका की पहुंच है। इसके तहत टोला स्तर पर एसएचजी, गांव स्तर पर वीओ (ग्राम संगठन) और संकुल स्तर पर सीएलएफ (संकुल स्तरीय संघ) का गठन हुआ है।
इन इकाइयों द्वारा 12.72 लाख से अधिक स्वयं सहायता समूहों का बड़ा नेटवर्क तैयार किया गया है। इन समूहों द्वारा अभी 16,537 करोड़ रुपये का लेनदेन हो रहा है। जीविका बिहार ग्रामीण आजीविका प्रोत्साहन सोसायटी (BRLP) की निबंधित संस्था है, जो बिहार के ग्रामीण विकास में मुख्य भूमिका निभा रही है।
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