दिल की बीमारियां आज दुनिया में मौत का सबसे बड़ा कारण हैं। हर साल करीब 18 मिलियन लोग इनसे जान गंवाते हैं, जिनमें से 3.6 मिलियन मामले भारत में हैं। हार्ट अटैक और स्ट्रोक के पीछे खराब खानपान, तनाव और कोलेस्ट्रॉल जैसे कारण हैं। लेकिन एक खास टेस्ट, लिपोप्रोटीन (ए) ब्लड टेस्ट, हार्ट अटैक का खतरा पहले बता सकता है। भारत में चार में से एक व्यक्ति में ये समस्या होती है। फिर भी ज्यादातर लोग इस टेस्ट को नहीं जानते। ये टेस्ट दिल की सेहत की रक्षा में बहुत बड़ी भूमिका निभा सकता है।
लिपोप्रोटीन (ए) क्या होता है
लिपोप्रोटीन (ए) या एलपी (ए) खून में पाया जाने वाला एक खास कोलेस्ट्रॉल है। ये प्रोटीन और चर्बी से बनता है। अगर इसका स्तर बढ़ जाए, तो खून की नलियों में चर्बी जमने लगती है। इसे प्लाक कहते हैं। ये प्लाक नलियों को संकरा और सख्त करता है, जिससे हार्ट अटैक या स्ट्रोक का खतरा बढ़ता है। ये समस्या ज्यादातर माता-पिता से बच्चों में आती है। भारत में 25 प्रतिशत लोगों में एलपी (ए) का स्तर ज्यादा होता है, खासकर दक्षिण एशियाई लोगों में। ये टेस्ट आम जांच में शामिल नहीं होता, लेकिन डॉक्टर इसे कराने की सलाह देते हैं।
टेस्ट क्यों जरूरी है
लिपोप्रोटीन (ए) टेस्ट दिल की बीमारी का खतरा बताने वाला बायोमार्कर है। अपोलो हॉस्पिटल्स के कार्डियोलॉजिस्ट डॉ. ए. श्रीनिवास कुमार कहते हैं कि भारत में 34 प्रतिशत हार्ट अटैक मरीजों में एलपी (ए) का स्तर बढ़ा होता है। डायबिटीज, मोटापा और हाई ब्लड प्रेशर के साथ ये खतरा और बढ़ जाता है। अगर ये टेस्ट समय पर हो जाए, तो शुरुआती चरण में ही बीमारी का पता लग सकता है। इससे इलाज आसान हो जाता है। जिनके परिवार में दिल की बीमारी रही हो, उनके लिए ये टेस्ट बहुत जरूरी है।
कौन करवाए ये टेस्ट
डॉक्टर कुछ खास लोगों को ये टेस्ट कराने की सलाह देते हैं। अगर आपके परिवार में 55 साल की उम्र से पहले किसी को हार्ट अटैक या स्ट्रोक हुआ हो, तो ये टेस्ट जरूर करवाएं। जिन्हें पहले दिल का दौरा या स्ट्रोक हो चुका हो, उन्हें भी ये जांच करानी चाहिए। डायबिटीज, हाई ब्लड प्रेशर या नसों की बीमारी वाले लोगों में ये खतरा ज्यादा होता है। महिलाओं में रजोनिवृत्ति के बाद एलपी (ए) का स्तर बढ़ सकता है, इसलिए उन्हें भी ये टेस्ट करवाना चाहिए। ये टेस्ट खून की जांच से होता है और कुछ ही मिनटों में हो जाता है।
सामान्य स्तर और खतरा
लिपोप्रोटीन (ए) का सामान्य स्तर 30 मिलीग्राम प्रति डेसीलीटर से कम होता है। अगर ये इससे ज्यादा हो, तो हार्ट अटैक या स्ट्रोक का खतरा बढ़ जाता है। ये स्तर जिंदगी भर लगभग एक जैसा रहता है। खानपान या जीवनशैली से इसका ज्यादा असर नहीं होता। इसलिए इसे आनुवंशिक जोखिम कहते हैं। नोवार्टिस के एक सर्वे के मुताबिक, एशिया और मिडिल ईस्ट में 66 प्रतिशत लोग नियमित हार्ट टेस्ट नहीं करवाते। केवल 22 प्रतिशत लोगों को एलपी (ए) टेस्ट की जानकारी है, और सिर्फ 7 प्रतिशत ने इसे करवाया है।
जागरूकता की कमी
भारत में दिल की बीमारियां बढ़ रही हैं, लेकिन लोग जागरूक नहीं हैं। लोग हाई कोलेस्ट्रॉल और ब्लड प्रेशर को तो समझते हैं, लेकिन एलपी (ए) के बारे में कम जानते हैं। डॉ. श्रीनिवास कहते हैं कि दक्षिण एशियाई लोग इस मामले में ज्यादा खतरे में हैं। समय पर टेस्ट करवाने से बड़ी बीमारी से बचा जा सकता है। खासकर युवा और मध्यम उम्र के लोगों को अपने परिवार के इतिहास को देखते हुए ये टेस्ट जरूर करवाना चाहिए।
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