संयुक्त राष्ट्र महासभा (यूएनजीए) के 80वें उच्चस्तरीय सत्र में विदेश मंत्री एस. जयशंकर का संबोधन भारत की वैश्विक सोच और दृष्टिकोण का प्रतीक बना। उन्होंने अपने भाषण की शुरुआत “नमस्कार” शब्द से की और बताया कि भारत समकालीन विश्व में तीन मूल मंत्रों, आत्मनिर्भरता, आत्मरक्षा और आत्मविश्वास के साथ आगे बढ़ रहा है। उनका यह संबोधन केवल भारत की उपलब्धियों का बखान नहीं था, बल्कि पूरी दुनिया के लिए एक संदेश था कि भारत किसी भी परिस्थिति में अपने स्वतंत्र फैसले लेने की क्षमता और इच्छाशक्ति रखता है।
आत्मनिर्भर भारत: नवाचार से विश्व को लाभ
जयशंकर ने स्पष्ट किया कि आत्मनिर्भरता का अर्थ आत्मकेंद्रित होना नहीं, बल्कि अपनी क्षमताओं को बढ़ाकर दुनिया के लिए योगदान देना है। उन्होंने उदाहरण देते हुए कहा कि भारत ने विनिर्माण, अंतरिक्ष कार्यक्रम, दवाइयों और डिजिटल नवाचार में उल्लेखनीय उपलब्धियां हासिल की हैं। इन प्रगतिों से न केवल भारत को मजबूती मिली है बल्कि पूरी दुनिया को भी लाभ पहुंचा है। कोरोना महामारी के दौरान दवाइयों और वैक्सीन की आपूर्ति इसका सबसे बड़ा प्रमाण रही। भारत का यह संदेश था कि आत्मनिर्भरता केवल आर्थिक विकास का जरिया नहीं, बल्कि वैश्विक साझेदारी को मजबूत करने का माध्यम भी है।
आत्मरक्षा और आत्मविश्वास: सुरक्षा और संकल्प का संदेश
विदेश मंत्री ने आत्मरक्षा के सिद्धांत पर जोर देते हुए कहा कि भारत आतंकवाद को किसी भी हाल में बर्दाश्त नहीं करेगा। उन्होंने सीमाओं की सुरक्षा, विदेशों में बसे भारतीयों की रक्षा और अंतरराष्ट्रीय साझेदारियों को भारत की प्राथमिकता बताया। इसके साथ ही आत्मविश्वास की बात करते हुए उन्होंने कहा कि भारत आज दुनिया की सबसे बड़ी आबादी और तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्था होने के नाते अपनी स्थिति को अच्छी तरह जानता है और भविष्य की दिशा तय करने में सक्षम है। भारत की यह आत्मविश्वासपूर्ण सोच उसे वैश्विक मंच पर एक सशक्त और संतुलित आवाज बनाती है।
वैश्विक संकटों पर भारत का संतुलित दृष्टिकोण
जयशंकर ने यूक्रेन और पश्चिम एशिया जैसे संघर्षों पर भी चिंता जताई और कहा कि अब समय आ गया है जब दुश्मनी छोड़कर संवाद और समाधान की राह अपनाई जाए। उन्होंने खाद्य और ऊर्जा सुरक्षा की चुनौतियों का जिक्र करते हुए कहा कि संघर्षों ने सबसे ज्यादा असर इन्हीं क्षेत्रों पर डाला है। इसके अलावा, व्यापार पर बढ़ते शुल्क और बाजार की अस्थिरता को लेकर भी उन्होंने चेताया। उन्होंने साफ किया कि भारत अपने विकल्पों की स्वतंत्रता बनाए रखेगा और ग्लोबल साउथ की आवाज बनकर उभरता रहेगा। यह संदेश न केवल विकासशील देशों को मजबूती देता है, बल्कि भारत की वैश्विक भूमिका को भी और प्रासंगिक बनाता है।
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