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बूथ कैप्चरिंग का जन्म: बिहार के बेगूसराय में 1957 की घटना, बूथ लूटा, हथियारों का राज चला, चुनाव आयोग ने नतीजे ऐसे घोषित किए

1957 के बिहार चुनाव में बेगूसराय के रचियारी गांव में पहली बूथ कैप्चरिंग हुई। बाहुबलियों ने हथियारों से वोट लूटे। चुनाव आयोग ने नतीजे घोषित कर दिए। जानें उस दौर की कहानी।

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आजादी के बाद भारत में लोकतंत्र की जड़ें मजबूत हो रही थीं। 1951 का पहला आम चुनाव हुआ, जहां लाखों लोगों ने पहली बार वोट डाला। लेकिन 1957 के दूसरे चुनाव में बिहार ने एक काला अध्याय जोड़ा। बेगूसराय जिले के रचियारी गांव में कचहरी टोला पर मतदान केंद्र था। यहां कांग्रेस उम्मीदवार सरयू प्रसाद सिंह के समर्थकों ने बूथ पर कब्जा कर लिया। हथियारों के बल पर फर्जी वोट डाले गए। विरोध करने वालों को पीटा गया। यह भारत की पहली बूथ कैप्चरिंग थी। कम्युनिस्ट उम्मीदवार चंद्रशेखर सिंह हार गए।

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रचियारी गांव की दहशत

रचियारी एक छोटा सा गांव था, बेगूसराय से 6 किलोमीटर दूर। 1957 के विधानसभा चुनाव में माहौल गर्म था। स्थानीय बाहुबली कामदेव सिंह ने सरयू प्रसाद के लिए बूथ लूटा। गोलियों की गूंज से गांव वाले डर गए। वोटों की पेटियां खाली कर फर्जी मत डाले गए। पुराने लोग आज भी याद करते हैं कि उस दिन गांव में सन्नाटा छा गया। महिलाएं और बच्चे घरों में छिप गए। यह घटना पूरे बिहार में फैल गई। माफिया नेताओं का दौर शुरू हो गया।

चुनाव आयोग की मजबूरी

उस समय चुनाव आयोग के पास कोई CCTV या केंद्रीय बल नहीं था। शिकायतें अखबारों से ही आतीं। बूथ कैप्चरिंग की खबर अगले दिन पता चलती। आयोग नतीजे घोषित करने के लिए मजबूर था। 1957 में बिहार विधानसभा के नतीजे वैध माने गए। लेकिन इस घटना ने सुधारों की मांग उठाई। धीरे-धीरे केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल तैनात होने लगे। 1970 के दशक में बूथ कैप्चरिंग बढ़ी, लेकिन आयोग ने सख्ती की।

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कामदेव सिंह का राज

कामदेव सिंह बेगूसराय का कुख्यात डॉन था। 1957 के बाद वह चुनावों में बूथ कैप्चरिंग का ‘एक्सपर्ट’ बन गया। 1969 के बिहार चुनाव में मतीहानी में 34 बूथ लूटे। केंद्रीय मंत्री ने भी उसकी मदद ली। सिंह का जन्म 1930 के आसपास हुआ। वह भुमिहार परिवार से था। 1980 में बिहार पुलिस ने उसे मार गिराया। लेकिन उसकी कहानी बिहार की राजनीति का हिस्सा बनी रही।

सुधारों का सफर

1957 की घटना ने चुनाव प्रक्रिया बदल दी। EVM का आगमन 1980 के दशक में हुआ। VVPAT, फ्लाइंग स्क्वॉड और वेबकास्टिंग ने गड़बड़ी रोकी। आज बूथ कैप्चरिंग दुर्लभ है। लेकिन रचियारी की यादें बिहार को सतर्क रखती हैं। लोकतंत्र की रक्षा के लिए ये काला अध्याय सबक है।

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