अमेरिका के व्हाइट हाउस में पूर्व व्यापार सलाहकार रहे पीटर नवारो ने सीएनबीसी से बातचीत में भारत को एक बार फिर कठघरे में खड़ा किया। उन्होंने कहा कि भारत के टैरिफ दुनिया के किसी भी बड़े देश की तुलना में सबसे ऊंचे हैं। यही नहीं, उन्होंने गैर-टैरिफ बाधाओं को भी ‘काफी सख्त’ बताया। नवारो के अनुसार, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के बीच संवाद हुआ था, जिसमें व्यापार बाधाओं पर बातचीत का संकेत दिया गया था। हालांकि, उनका मानना है कि इन अवरोधों ने अमेरिकी उद्योग और कामगारों के लिए मुश्किलें खड़ी की हैं।
रूस से तेल खरीदने पर विवाद
नवारो ने अपने इंटरव्यू में विशेष तौर पर रूस से भारत के तेल आयात को लेकर चिंता जताई। उन्होंने कहा कि 2022 से पहले भारत ने कभी इस स्तर पर रूस से कच्चा तेल नहीं खरीदा था, लेकिन यूक्रेन युद्ध के बाद भारतीय रिफाइनरी कंपनियों ने रूसी आपूर्तिकर्ताओं के साथ हाथ मिला लिया। नवारो ने इसे ‘डाकुओं जैसी साझेदारी’ करार देते हुए दावा किया कि इससे भारतीय कंपनियों ने अनुचित लाभ कमाया और अमेरिकी कामगारों पर सीधा बोझ पड़ा। उनके अनुसार, भारत की इस नीति का असर न केवल वैश्विक ऊर्जा बाजार पर पड़ा बल्कि यह अमेरिका की रणनीतिक चुनौतियों को भी बढ़ाया।
रूस-चीन गठबंधन में भारत की मौजूदगी पर उठे सवाल
नवारो ने आगे भारत की रूस और चीन के साथ मंच साझा करने की आलोचना की। उन्होंने कहा कि भारत लंबे समय से चीन को अपनी सुरक्षा के लिए सबसे बड़ा खतरा मानता रहा है, फिर भी प्रधानमंत्री मोदी का चीनी नेताओं के साथ खड़ा होना आश्चर्यजनक है। रूस को लेकर भी उन्होंने टिप्पणी की कि भारत द्वारा रूसी तेल से होने वाले लाभ को अप्रत्यक्ष रूप से हथियार खरीद में लगाया जाता है, जो यूक्रेन युद्ध को और भड़काता है। उनका कहना था कि यह सिलसिला अमेरिकी करदाताओं को महंगा पड़ता है क्योंकि अंततः अमेरिका को ही यूक्रेन की रक्षा के लिए ज्यादा संसाधन खर्च करने पड़ते हैं।
अमेरिका-भारत संबंधों पर होने वाले असर
नवारो के बयानों से साफ झलकता है कि अमेरिका-भारत संबंधों में व्यापार और भू-राजनीति दोनों ही बड़े मुद्दे बने हुए हैं। एक ओर जहां अमेरिका चाहता है कि भारत अपने टैरिफ और गैर-टैरिफ बाधाओं को कम करे, वहीं दूसरी ओर रूस और चीन के साथ भारत की समीपता वाशिंगटन को असहज करती है।
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