गांधीनगर में आयोजित पांचवें अखिल भारतीय राजभाषा सम्मेलन में गृह मंत्री अमित शाह ने कहा कि हिंदी को केवल आधिकारिक कार्यों तक सीमित नहीं रखना चाहिए, बल्कि इसे विज्ञान, तकनीक, न्यायपालिका और पुलिस प्रशासन की भाषा बनाना होगा। उन्होंने जोर देकर कहा कि जब काम मातृभाषाओं में होता है तो जनता से सहज जुड़ाव अपने आप हो जाता है। शाह ने सभी राज्यों के मुख्यमंत्रियों से अपील की कि वे गृह मंत्रालय को अपनी मातृभाषा में पत्र लिखें और आश्वासन दिया कि उन्हें भी मातृभाषा में ही जवाब मिलेगा।
हिंदी और भारतीय भाषाओं का सहयोग
अमित शाह ने कहा कि हिंदी अन्य भारतीय भाषाओं की प्रतिस्पर्धी नहीं बल्कि उनकी मित्र है। उन्होंने ‘सारथी’ सॉफ्टवेयर का उदाहरण देते हुए बताया कि यह तकनीक हिंदी और अन्य भारतीय भाषाओं के बीच अनुवाद की सुविधा देती है और भाषाई एकता को मजबूत करती है। उन्होंने गुजरात का उदाहरण देते हुए कहा कि जहां गुजराती मातृभाषा है, वहीं हिंदी के साथ उसका सहअस्तित्व राज्य की सामूहिक प्रगति का प्रतीक है। शाह ने यह भी याद दिलाया कि महात्मा गांधी, सरदार पटेल और स्वामी दयानंद सरस्वती जैसे नेताओं ने हिंदी को राष्ट्र की एकता के सूत्र के रूप में स्वीकारा और आगे बढ़ाया।
हिंदी ने देश की भाषाई समस्या का स्वदेशी समाधान दिया है। हिंदी दिवस के अवसर पर गांधीनगर में आयोजित पांचवे अखिल भारतीय राजभाषा सम्मेलन से लाइव… https://t.co/7t07B1zqLn
— Amit Shah (@AmitShah) September 14, 2025
मातृभाषा में शिक्षा और संस्कृत का महत्व
गृह मंत्री ने माता-पिता से आग्रह किया कि वे अपने बच्चों को मातृभाषा में शिक्षा दिलाने के लिए प्रेरित करें। उन्होंने दावा किया कि जब बच्चे किसी अन्य भाषा में शिक्षा प्राप्त करते हैं तो उनकी सीखने की क्षमता 30 प्रतिशत तक कम हो जाती है। अमित शाह ने संस्कृत को भारतीय ज्ञान का स्रोत बताते हुए कहा कि हिंदी ने उस ज्ञान को हर घर तक पहुंचाने का कार्य किया है। उन्होंने छत्रपति शिवाजी महाराज का उल्लेख करते हुए कहा कि “स्वराज, स्वधर्म और स्वभाषा” किसी भी देश की आत्मसम्मान की नींव हैं।
हिंदी भाषाई एकता का अनमोल गहना है। यह सभी भाषाओं को साथ लेकर आगे बढ़ रही है। हिंदी दिवस पर मेरा संदेश… https://t.co/QbCS7R6LGT
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भारतीय भाषाओं का स्वर्णकाल और मोदी का योगदान
हिंदी दिवस पर अपने संदेश में अमित शाह ने कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में पिछले एक दशक में भारतीय भाषाओं और संस्कृति के पुनर्जागरण का स्वर्णकाल आया है। चाहे संयुक्त राष्ट्र हो, जी-20 सम्मेलन या शंघाई सहयोग संगठन हर जगह पीएम मोदी ने हिंदी और भारतीय भाषाओं में संवाद कर देश की भाषाई अस्मिता को गौरव दिलाया है। उन्होंने कहा कि ‘अमृत काल’ में स्वतंत्रता के पंच प्रणों में भाषाओं को गुलामी के प्रतीकों से मुक्त करने का संकल्प शामिल है। हिंदी, जिसने राजभाषा के रूप में 76 वर्षों की गौरवशाली यात्रा पूरी की है, अब जनभाषा और जनचेतना की भाषा बन चुकी है।
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