आज भाद्रपद मास की पूर्णिमा तिथि है, जिसे पूर्णिमा श्राद्ध या प्रोष्ठपदी पूर्णिमा के नाम से जाना जाता है। ये दिन पितरों की आत्मा को शांति देने और उनके आशीर्वाद प्राप्त करने का विशेष अवसर है। साथ ही, आज रात साल 2025 का अंतिम चंद्र ग्रहण भी लगेगा, जिसका सूतक काल श्राद्ध कर्मों को प्रभावित करेगा। आइए जानते हैं इस दिन के धार्मिक और आध्यात्मिक महत्व को।
पूर्णिमा श्राद्ध: पितरों के प्रति श्रद्धा का पर्व
भाद्रपद पूर्णिमा से पितृपक्ष की शुरुआत होती है, जो 15 दिनों तक चलता है और आश्विन अमावस्या (महालया) पर समाप्त होता है। इस दिन उन पूर्वजों का श्राद्ध किया जाता है, जिनका निधन पूर्णिमा तिथि को हुआ हो। मान्यता है कि श्राद्ध कर्म, तर्पण, पिंडदान और ब्राह्मण भोज से पितरों की आत्मा को तृप्ति मिलती है, जिससे घर में सुख-समृद्धि और शांति आती है।
कैसे करें पूर्णिमा श्राद्ध?
तर्पण और पिंडदान: पवित्र नदी या घर पर तिल और जल से तर्पण करें।
ब्राह्मण भोज: सात्विक भोजन बनाकर ब्राह्मणों को भोजन कराएं और दान-दक्षिणा दें।
पंचबलि कर्म: कौए, गाय और कुत्ते को भोजन अर्पित करें, क्योंकि इन्हें पितरों का प्रतिनिधि माना जाता है।
अपराह्न काल में अनुष्ठान: श्राद्ध कर्म दोपहर 12 बजे से मध्यरात्रि से पहले पूरे करें।
विद्वानों के अनुसार, ये धार्मिक अनुष्ठान पितृदोष को शांत करने और परिवार की समृद्धि के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है।
पितृपक्ष 2025: तिथियां और महत्व
पितृपक्ष की शुरुआत आज, 7 सितंबर 2025 से हो रही है और इसका समापन 21 सितंबर को महालया अमावस्या के दिन होगा। इन 15 दिनों में हर तिथि पर पितरों का तर्पण और श्राद्ध किया जाता है। ये अवधि पूर्वजों के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करने और उनके आशीर्वाद प्राप्त करने का समय है। मान्यता है कि पितरों की संतुष्टि से जीवन में बाधाएं कम होती हैं और सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है।
चंद्र ग्रहण 2025: सूतक काल का प्रभाव
आज रात 9:58 बजे से 2025 का अंतिम चंद्र ग्रहण शुरू होगा, जो 8 सितंबर को मध्य रात्रि 1:26 बजे तक रहेगा। इसकी कुल अवधि 3 घंटे 29 मिनट होगी। सूतक काल, जो दोपहर 12:57 बजे से शुरू होगा, श्राद्ध कर्मों को प्रभावित करेगा। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, सूतक काल में कोई शुभ कार्य नहीं किया जाता। इसलिए, पूर्णिमा श्राद्ध और तर्पण को कुतुप काल (सुबह 11:54 से दोपहर 12:44 तक) में पूरा करना उत्तम रहेगा।
महत्वपूर्ण समय:
पूर्णिमा तिथि: 6 सितंबर, मध्यरात्रि 1:42 से 7 सितंबर, रात 11:39 तक।
कुतुप काल: सुबह 11:54 से दोपहर 12:44 तक।
सूतक काल: दोपहर 12:57 से शुरू।
श्राद्ध का आध्यात्मिक महत्व
पूर्णिमा श्राद्ध, जिसे पार्वण श्राद्ध भी कहते हैं, पितरों के प्रति श्रद्धा और सम्मान का प्रतीक है। ये माना जाता है कि इस दिन किए गए दान और तर्पण सीधे पूर्वजों तक पहुंचते हैं, जिससे उनकी आत्मा को शांति मिलती है। इसके अलावा, ये अनुष्ठान परिवार में सुख-शांति और समृद्धि लाने में सहायक होता है। कौए, गाय और कुत्ते को भोजन देने की परंपरा इसलिए है, क्योंकि इन्हें यमराज का दूत और पितरों का प्रतिनिधि माना जाता है।
निष्कर्ष: श्रद्धा और आस्था का संगम
भाद्रपद पूर्णिमा 2025 न केवल पितृपक्ष की शुरुआत का प्रतीक है, बल्कि ये हमें अपने पूर्वजों के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करने का अवसर भी देता है। सूतक काल से पहले श्राद्ध और तर्पण के अनुष्ठान पूरे कर लें, ताकि पितरों का आशीर्वाद प्राप्त हो। ये पर्व हमें याद दिलाता है कि हमारी जड़ें कितनी गहरी हैं और पूर्वजों का आशीर्वाद हमारे जीवन को कितना समृद्ध बना सकता है।
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