गुजरात के दो बड़े शहर अहमदाबाद और सूरत इन दिनों एक गंभीर खतरे का सामना कर रहे हैं। इन शहरों में जमीन धीरे-धीरे नीचे धंस रही है, और ये समस्या दिन-ब-दिन गंभीर होती जा रही है। हाल के शोध बताते हैं कि अहमदाबाद के कुछ इलाकों में जमीन हर साल 3.5 सेंटीमीटर तक धंस रही है, जबकि सूरत में ये दर 6.7 सेंटीमीटर तक पहुंच चुकी है। इसकी सबसे बड़ी वजह भूजल का अत्यधिक दोहन है, जिसके कारण जमीन की परतें सिकुड़ रही हैं। अगर समय रहते इस पर ध्यान नहीं दिया गया, तो हालात उत्तराखंड के जोशीमठ और उत्तरकाशी जैसे हो सकते हैं, जहां जमीन धंसने से घरों में दरारें पड़ गई थीं और लोग बेघर हो गए थे।
क्या है जमीन धंसने की वजह?
शोधकर्ताओं के मुताबिक, अहमदाबाद और सूरत जैसे शहरों में पानी की बढ़ती मांग को पूरा करने के लिए भूजल का अंधाधुंध दोहन हो रहा है। जब भूजल को तेजी से निकाला जाता है, तो जमीन के नीचे की परतों में दबाव कम हो जाता है। इससे मिट्टी सघन होकर बैठने लगती है, और ऊपर की सतह धंसने लगती है। सिंगापुर की नान्यांग टेक्नोलॉजिकल यूनिवर्सिटी की एक स्टडी के अनुसार, 2014 से 2020 के बीच अहमदाबाद के पिपलाज इलाके में जमीन 4.2 सेंटीमीटर सालाना की दर से धंसी। वहीं, 2020 से 2023 तक बापल और वटवा जैसे इलाकों में यह दर 3.5 सेंटीमीटर रही। सूरत के करंज इलाके में भी 0.01 से 6.7 सेंटीमीटर प्रति वर्ष की दर से धंसाव देखा गया।
कच्छ और सौराष्ट्र की स्थिति
ये समस्या सिर्फ अहमदाबाद और सूरत तक सीमित नहीं है। कच्छ और सौराष्ट्र में भी जमीन धंसने की खबरें सामने आई हैं। कच्छ में औसतन 4.3 मिलीमीटर प्रति वर्ष की दर से जमीन धंस रही है, और कुछ जगहों पर ये 2.2 सेंटीमीटर तक है। सौराष्ट्र के कुछ इलाकों में 4.5 से 7.5 मिलीमीटर सालाना धंसाव दर्ज हुआ है। कच्छ में कट्रोल हिल फॉल्ट लाइन के पास 2.5 मिलीमीटर प्रति वर्ष की दर से जमीन नीचे जा रही है। शोधकर्ताओं का कहना है कि भूजल दोहन के अलावा भूगर्भीय बदलाव भी इस समस्या को बढ़ा रहे हैं।
क्या है खतरा?
जमीन धंसने से इमारतों, सड़कों और पानी की पाइपलाइनों को नुकसान हो सकता है। अहमदाबाद और सूरत जैसे घनी आबादी वाले शहरों में ये खतरा और भी बड़ा है। इमारतों में दरारें, दीवारों का टूटना और बुनियादी ढांचे को नुकसान आम बात हो सकती है। साथ ही, ये बाढ़ के खतरे को भी बढ़ा सकता है, खासकर तटीय इलाकों में। देहरादून की यूनिवर्सिटी ऑफ पेट्रोलियम एंड एनर्जी स्टडीज की एक हालिया रिपोर्ट में इस समस्या को गंभीर बताया गया है।
तकनीक से हो रही निगरानी
इस खतरे को समझने के लिए वैज्ञानिक InSAR यानी इंटरफेरोमेट्रिक सिंथेटिक एपर्चर रडार तकनीक का इस्तेमाल कर रहे हैं। ये तकनीक उपग्रहों की मदद से जमीन के छोटे-छोटे बदलावों को मिलीमीटर की सटीकता के साथ मापती है। इसकी मदद से शोधकर्ताओं ने अहमदाबाद, सूरत और कच्छ में धंसाव के सटीक आंकड़े जुटाए हैं। ये आंकड़े बताते हैं कि अगर भूजल दोहन को नियंत्रित नहीं किया गया, तो हालात और खराब हो सकते हैं।
Keywords – Land Subsidence, Ahmedabad Sinking, Surat Sinking, Groundwater Extraction, Coastal Cities, Urban Infrastructure, Tectonic Changes, Insar Technology