भारत में ब्रेस्ट और सर्वाइकल कैंसर महिलाओं के बीच सबसे आम कैंसर हैं। ये दोनों बीमारियां अगर शुरुआती दौर में पकड़ ली जाएं, तो इलाज की संभावना 90% तक बढ़ जाती है। लेकिन हाल के आंकड़े चौंकाने वाले हैं। एक रिपोर्ट के अनुसार, भारत में केवल 0.9% महिलाएं ब्रेस्ट कैंसर की स्क्रीनिंग कराती हैं, जबकि सर्वाइकल कैंसर की जांच कराने वाली महिलाओं की संख्या सिर्फ 1.09% है। यानी हर 100 में से केवल एक महिला ही इन बीमारियों की जांच करवाती है। यह स्थिति बेहद गंभीर है, क्योंकि समय पर जांच न होने से कैंसर का पता देर से चलता है, जिससे इलाज मुश्किल हो जाता है।
राज्यों में स्क्रीनिंग की तस्वीर
भारत के अलग-अलग राज्यों में स्क्रीनिंग की स्थिति अलग-अलग है। केरल में सबसे ज्यादा 4.5% महिलाएं ब्रेस्ट कैंसर की जांच कराती हैं, इसके बाद कर्नाटक में 2.9% और महाराष्ट्र में 2.05% का आंकड़ा है। लेकिन असम में यह संख्या केवल 0.5% है, जो बहुत कम है। नागालैंड में तो ब्रेस्ट कैंसर की स्क्रीनिंग का आंकड़ा शून्य है। आंध्र प्रदेश में 0.1% और उत्तराखंड में 0.27% महिलाएं ही जांच कराती हैं। सर्वाइकल कैंसर की स्क्रीनिंग में भी तमिलनाडु में 10% की दर सबसे बेहतर है, लेकिन ज्यादातर राज्यों में यह संख्या 1% से भी कम है। यह दिखाता है कि देश में कैंसर स्क्रीनिंग की सुविधाएं और जागरूकता दोनों की कमी है।
जांच न कराने के पीछे क्या कारण
भारत में कैंसर स्क्रीनिंग की कमी के कई कारण हैं। सबसे बड़ा कारण है जागरूकता की कमी। बहुत सी महिलाओं को यह पता ही नहीं कि ब्रेस्ट और सर्वाइकल कैंसर की जांच उपलब्ध है और इसे कब करवाना चाहिए। खासकर ग्रामीण इलाकों में यह जानकारी न के बराबर है। दूसरी बड़ी वजह है शर्म और झिझक। हमारे समाज में महिलाओं के स्वास्थ्य, खासकर प्राइवेट अंगों से जुड़ी समस्याओं पर खुलकर बात नहीं होती। इस वजह से कई महिलाएं डॉक्टर के पास जाने से कतराती हैं। इसके अलावा, आर्थिक तंगी भी एक बड़ा कारण है। स्क्रीनिंग सेंटर छोटे शहरों और गांवों में कम हैं, और जांच का खर्च भी कई महिलाओं के लिए मुश्किल होता है।
समय पर जांच के फायदे
ब्रेस्ट कैंसर की जांच के लिए मैमोग्राफी और सेल्फ-एग्जामिनेशन बहुत जरूरी हैं। ये शुरुआती गांठ का पता लगा सकते हैं, जिससे इलाज आसान हो जाता है। सर्वाइकल कैंसर के लिए पेप स्मीयर और एचपीवी टेस्ट बेहद कारगर हैं। अगर इनका समय पर इस्तेमाल किया जाए, तो कैंसर का पता शुरुआती स्टेज में लग सकता है। आंकड़े बताते हैं कि शुरुआती जांच से इलाज की सफलता 90% तक बढ़ जाती है। इससे न सिर्फ जिंदगी बचती है, बल्कि इलाज का खर्च और जटिलता भी कम होती है।
जागरूकता और सुविधाओं की जरूरत
भारत में कैंसर स्क्रीनिंग को बढ़ाने के लिए जागरूकता बहुत जरूरी है। महिलाओं को यह समझाना होगा कि जांच कराने में कोई शर्मिंदगी नहीं है। स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं को ग्रामीण इलाकों में सक्रिय करना होगा, ताकि ज्यादा से ज्यादा महिलाएं स्क्रीनिंग के लिए आगे आएं। सरकार की ओर से मुफ्त जांच कैंप और स्क्रीनिंग सेंटर बढ़ाने की जरूरत है, खासकर छोटे शहरों और गांवों में। मोबाइल स्क्रीनिंग यूनिट्स भी एक अच्छा तरीका हो सकता है, जिससे दूर-दराज की महिलाएं भी जांच करा सकें। यह सुनिश्चित करना होगा कि हर महिला को अपनी सेहत की जानकारी हो और वह समय पर जांच कराए।
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